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पूज्यश्री के चरणों में प्रार्थना है कि हमें ऐसा ज्ञान प्रदान करें जिससे निरन्तर अज्ञान का आभास होता रहे, हमें ऐसा वैराग्य प्रदान करें, जिसमें हमारी आसक्ति पिघलती जाये और ऐसी भक्ति प्रदान करे जिसमें अहंकार का पर्वत चूर-चूर हो जाये ।
पद प्राप्त हो तब तक चिन्ता नहीं । पद के साथ मद मिलने पर बात खतरनाक बन जाती है, अहंकार कान में फूंक मारता है कि अब तो बड़ा बन गया, पदवीधारी बन गया ।
"तलहटी में खडा हूं पर मानता हूं कि शिखर पर चढ़ गया
__ जानता कुछ भी नहीं हूं फिर भी मानता हूं कि मैं सब कुछ पढ़ गया हूं ।
अहंकार का धुंआ ऐसा छा गया है कि कुछ भी नहीं दीखता।
सबसे पीछे खड़ा हूं परन्तु मानता हूं कि मैं सबसे आगे बढ़ गया हूं।"
ऐसा अहंकार नष्ट हो जाये, ऐसी पूज्यश्री को अभ्यर्थना है।
जो पद प्राप्त हुआ है उसके अनुरूप योग्यता भी प्राप्त हो, ऐसी परम कृपालु प्रभु को तथा पूज्यश्री गुरुदेव को, चतुर्विध संघ के समक्ष मेरी विनम्र प्रार्थना है ।
अहंकार एवं आत्मविश्वास अहंकार एवं आत्मविश्वास के बीच की सूक्ष्म भेदरेखा समझें ।
रावण, दुर्योधन, हिटलर या धवल जैसा (अन्य को मार डालने के आशयवाला एवं हुंकार युक्त) विश्वास आत्म-विश्वास नहीं कहलाता, परन्तु अहंकार कहलाता है । पूनिया, अभयकुमार, चम्पा श्राविका या कपर्दी मंत्री के समान नम्रतायुक्त आत्मविश्वास चाहिये, जो हमें यह मान्य कराये कि अनन्त शक्ति के निधान प्रभु मेरे साथ हैं ।
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