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मृत्यु के समय सब भूल जाओगे; जब नसें खिंच रही हों, अंतडियों में तनाव हो, भयंकर वेदना हो तब नवकार के अतिरिक्त अन्य कुछ भी याद नहीं आ सकता । उस समय चौदह पूर्वधर भी अन्य सब छोड़ कर नवकार की शरण में जाते हैं ।
नवकार को भावित बनाई होगी तो ही अन्त समय में याद आयेगी । बार-बार भावपूर्वक रटने से ही नवकार भावित बनती है । इसीलिए मैं नवकारवाली (माला गिनने) की सौगन्ध देता रहता हूं ।
आग में जलते घर में से वणिक रत्नों की पोटली लेकर शीघ्र निकल जाता है, उस प्रकार मृत्यु के समय जलती देह में से नवकार रूपी रत्नों की पोटली लेकर हमें निकल जाना है ।
अत्यन्त सावधानी रखनी पड़ेगी । यह सावधानी भगवान की कृपा से ही मिलेगी ।
यदि भगवान आपके हृदय में रह गये तो चाहे जितना मोह का तूफान आपकी जीवन- नैया नहीं डुबा सकेगा । 'तप-जप मोह महातोफाने,
नाव न चाले माने रे;
पण नहीं भय मुज हाथोहाथे, तारे ते छे साथे रे ।'
अमेरिका के समान महासत्ता का पीठ-बल हो उसे छोटेछोटे देश परेशान नहीं कर सकते, उस प्रकार जिसे प्रभु का पीठबल मिला हो, उसे मोह परेशान नहीं कर सकता ।
" इक्को मे सासओ अप्पा, नाण- - दंसण-संजुओ ।
सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोग - लक्खणा ।। १६१ ॥" यह गाथा यहां आई है, जो हम नित्य संथारा पोरसी में बोलते
ही हैं ।
मृत्यु की तिथि, वार (दिन), माह, वर्ष अथवा कोई समय निश्चित नहीं है । वह चाहे जब आ सकती है । साधु मृत्यु के स्वागतार्थ सदा तैयार रहता है 'आ मृत्युदेव ! मैं तेरा स्वागत करने के लिए तैयार हूं । संसार के अन्य लोग तुझसे डर कर दूर भागते होंगे, परन्तु मैं ऐसा नहीं हूं । आ मित्र ! मैं हृदय से
कहे कलापूर्णसूरि २
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