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भीमासर - कच्छ, वि.सं. २०४६
२-७-२०००, रविवार आषाढ़ शुक्ला-१ : पालीताणा
* जिस साधना के द्वारा भगवान ने पूर्ण आनन्द प्राप्त किया, वही साधना हमें बताई है। जिस व्यापार के द्वारा पिताजी ने अपार धन कमाया हो, उस व्यापार की कला वे अपनी सन्तानों को नहीं बतायेंगे ? हम सब भगवान की सन्तान हैं ।
भगवान तो कह गये हैं कि आपको प्राप्त साधना आप भी अपने लिए अनामत मत रखना, दूसरों को देते रहना । देते रहोगे तो परम्परा चलेगी।
* कहा जाता है कि पुष्करावर्त के मेघ से २१ वर्षों तक भूमि उपज देती रहती है । भगवान महावीर की वाणी के प्रभाव से २१ हजार वर्ष तक शासन चलता रहेगा ।
* बादलों को देखकर मोर को सर्वाधिक आनन्द होता है । सम्यग् दृष्टि को प्रभु की वाणी की वृष्टि से आनन्द होता है । क्या अपना हृदय जिन-वचनों का श्रवण करके आनन्द से नाच उठता है ? ज्यों ज्यों आनन्द बढ़ता जाता है, त्यों त्यों अपनी भूमिका उच्च-उच्च बनती जाती है। सम्यक्त्व, देशविरति, सर्वविरति आदि आगे-आगे की भूमिकाएं आती जाती हैं । (कहे कलापूर्णसूरि - २www sss wwwwwwwwwwwww0 ४४५)