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________________ - सामूहिक भक्ति, सोलापुर, वि.सं. २०५३ १-७-२०००, शनिवार आषा. कृष्णा-३० : पालीताणा * यह तीर्थ भगवान की करुणा का फल है । सब जीव पूर्ण सुख को प्राप्त करें, ऐसी करुणा में से इस तीर्थ का जन्म हुआ है। ___भगवान का चारित्र पूर्ण सुख प्रदान करने के लिए समर्थ है । चारित्र के दृढ संकल्प ऐसे डालो जिससे यह चारित्र पूर्ण सुखमय मोक्ष प्राप्त न हो तब तक प्रत्येक जन्म में प्राप्त होता ही रहे । सात-आठ मानव-भवों तक चारित्र मिले तो बात पूरी हो जाये, मोक्ष प्राप्त हो ही जाये । यह चारित्र निरतिचार चाहिये, निःशल्य चाहिये । शल्य रह जाये तो समाधि-मरण नहीं मिलेगा । समाधिमरण नहीं मिलेगा तो सद्गति कहां से मिलेगी ? शल्ययुक्त मृत्यु हमें विराधक बनाता है । यह एक भव सुधर जाये, एक बार केवल समाधि-मृत्यु मिल जाये तो भवोभव सुधर जाये । 'शर्ट' में पहला बटन बराबर डल जाये तो शेष बटन बराबर ही आयेंगे । एक बटन टेढ़ा-मेढ़ा डल गया तो सभी बटन आडे-टेढ़े ही डलेंगे । यह एक भव बराबर तो भवोभव बराबर । यह एक भव खराब (कहे कलापूर्णसूरि - २00000mmmmmons ४३९)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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