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________________ नूतन दीक्षित शिष्य क्या केवलज्ञान प्राप्त कर लेता ? उस समय नम्र शिष्य तो सोचेगा, "मैं कैसा अधम हूं कि इतनी उच्च भूमिका पर स्थित आचार्य को मेरे कारण निम्न भूमिका पर आना पड़ता है । इनके पास शिष्यों की कहां कमी थी ? ५०० शिष्य तो थे ही । उन्होंने मुझे सामने से कहां दीक्षा दी हैं ? मैंने मांगी तब दी है। मेरे निमित्त आचार्य भगवन् को क्रोध करना पड़े यह मेरी अयोग्यता है । ऐसे विचारों से ही उन्हें केवलज्ञान मिला होगा न ? * समय सबको समान ही मिलता है । महापुरुषों को २५ घंटे और दूसरों को २४ घंटों का दिन मिलता हो, ऐसी बात नहीं है। समान रूप से प्राप्त होती समय रूपी बक्षीस को सफल कैसे बनाओगे ? अपराध करके उसे व्यर्थ भी खोया जा सकता है और आराधना करके सफल भी बनाया जा सकता है । भगवान कहां है ? पुष्प की पंखुड़ियों में सुगन्ध की तरह मैं (भगवान) शास्त्र की पंक्तियों में विद्यमान हूं । जो मुझे मिलना चाहें, वे मुझे शास्त्रों में देखें । भगवान आये तो... बुद्धि में भगवान आये तो सम्यग्ज्ञान प्राप्त होता है । हृदय में भगवान आये तो सम्यग्दर्शन प्राप्त होता है । हाथ में (काया में) भगवान आये तो सम्यक्चारित्र प्राप्त होता है। ४३८ oooooooooooooooooo
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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