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हमारे हाथ से बननेवाले व्यंजन कैसे हैं । यह तो आपको ज्यादा पता लगता है।
* शुभ विचारों से शुभ कर्मों की शक्ति बढ़ती है । इतनी शक्ति बढ़ती है कि अशुभ कर्म भी शुभ में बदल जाते हैं । अशुभ विचार करने से उल्टा होता है - शुभ कर्म भी अशुभ में बदल जाते हैं ।
इसीलिए शास्त्रकार शुभ विचारों पर बल देने का कहते हैं ।
* मैं अभी सिद्धाचल पर गिर गया था । नीचे पत्थर थे । कहीं भी गिर जाऊं तो चोट लग सकती थी । सिर में, पीठ में, पांव में, हाथ में, कहीं तो चोट लगती ही, परन्तु आश्चर्य...! मुझे कहीं भी चोट नहीं लगी । मुझे स्वयं को भी आश्चर्य होता है। इसमें मैं भगवान का अनुग्रह न मानूं तो किसका मानूं ?
* दिन में 'इरियावहियं' कितनी बार करनी पड़ती है ? कदम-कदम पर 'इरियावहियं' तैयार रहती है। प्रतिक्रमण, पडिलेहन, देववन्दन आदि समस्त क्रियाओं में 'इरियावहियं' । अरे, कचरा निकालना हो या एक सौ कदमों से अधिक चले हों या प्रस्रवण
आदि परठा हो तो भी इरियावहियं । इस 'इरियावहियं' में क्या है ? इरियावहियं में अशुभ भाव की धारा को नाश करने के तीनों उपाय समाविष्ट हैं ।
'इरियावहियं' में दुष्कृत - गरे । लोगस्स में सुकृत-अनुमोदना एवं शरणागति है ।
* भूल करनी, करने के पश्चात् स्वीकार नहीं करनी, पश्चाताप अथवा प्रायश्चित नहीं करना अर्थात् अपने हाथों अपना ही दुःखमय भावी खड़ा करना ।
__यथासंभव भूल करनी ही नहीं। भूल हो जाये तो तुरन्त स्वीकार करनी, 'मिच्छामि दुक्कडं' मांगना, छोटे हों तो भी सामने से 'मिच्छामि दुक्कडं' मांगना । इसमें कोई हमारा बड़प्पन कम नहीं होता ।
* आचार्य को क्रोध आ जाये तब विनीत शिष्य क्या सोचता है ? आचार्य कैसे क्रोधी हैं ? डांट देते ही रहते हैं। क्या मैं ही एक मिला ? दूसरे भी कहां ऐसे अपराध नहीं करते ? ऐसे विचार करते हैं ? ऐसे विचार किये होते तो चंडरुद्राचार्य का वह (कहे कलापूर्णसूरि - २6000000000000000000 ४३७)