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________________ है । इसका अर्थ यह हुआ कि गम्भीरता मूल्यवान है । शरीर स्वस्थ था तब तक पू. देवेन्द्रसूरिजी प्रत्येक क्रिया खड़ेखड़े ही करते थे । ७८ वर्ष की आयु में भी भारी अप्रमत्तता थी । अन्तिम दो वर्ष फ्रेक्चर के कारण शय्या पर थे, वह अलग बात है । अन्यथा उनकी अप्रमत्तता अद्भुत थी । वर्तमान समय में ऐसी अप्रमत्तता कठिनाई से ही देखने को मिलती है । * एक भी मृत्यु शल्यसहित हो तो पुनः पुनः जन्म-मरण चालु ही रहता है । इसीलिए पश्चाताप एवं प्रायश्चित के द्वारा शल्य का विसर्जन करने का शास्त्रीय विधान है । भुवनभानु केवली अपना जीवन-चरित्र बताते हुए कहते हैं कि अनेक चौबीसियों से पूर्व मैं चौदह पूर्वधर था, परन्तु प्रमाद आदि के कारण मैं अनन्त काल के लिए ठेठ निगोद में चला गया । प्रमाद अपना सबसे बडा शत्रु है । कट्टर में कट्टर शत्रु भी जो हानि पहुंचाये, उतनी हानि यह एक प्रमाद पहुंचाता है । प्रमाद कहां आता है ? अधिकतर प्रतिक्रमण, वाचना आदि में प्रमाद आता है । यहां भी झौंके खाने वाले होंगे । नींद करते व्यक्ति को जगायें तो क्या कहेगा ? 'नहीं साहिब, मैं नींद नहीं करता ।' नींद करने वाला कदापि सत्य नहीं बोलता । गुरु के जगाने पर भी वह नहीं जगे तो गुरु को अन्त में उसकी उपेक्षा करनी पड़ती है । गुरु की उपेक्षा बढ़ती जाये त्यों उस शिष्य का प्रमाद बढ़ता जाता है । इस प्रमाद के कारण अनन्त चौदह पूर्वी आज भी निगोद में पड़े हुए हैं । ये सब बातें आगमों की हैं। यहां मेरा कुछ भी नहीं है । हम तो रसोइए हैं । रसोइये का अपना कुछ नहीं होता । सेठ की सामग्री में से आपको प्रिय लगें ऐसे व्यंजन बनाकर यह आपको देता है । हम भी भगवान की बातें आप जैसों को समझ में आयें वैसी भाषा में कहने का प्रयत्न करते हैं । wwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि - २ ४३६ क
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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