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बने अशुभ विचार आपसे कार्य कराते रहें । आपकी आंखों के समक्ष ही चोरी होती रहे, फिर भी आप विवश होकर देखते रहें । कुछ भी नहीं कर सकते ।
यदि ऐसा ही हो तो अशुभ विचारों को बद्धमूल क्यों होने दें ? अशुभ विचारों को तब ही दुष्कृत गर्दा के द्वारा निर्मूल क्यों न कर लें ?
अशुभ विचारों से त्रिपृष्ठ के भव में किये गये कर्म ठेठ महावीर स्वामी के भव में भी भोगने पड़ते हों, कर्म भगवान को भी नहीं छोड़ते हों, तो उन कर्मों से हम अभी ही से सचेत्त न रहें ?
पापों को दूर करने हों तो सतत उनकी आलोचना, निन्दा, गर्हा, दुगंछा आदि करते रहें ।
"आलोइअ निदिअ गरहिअ दुगंछिअं सम्मं ।" ऐसा करने वाले साधक के जन्म-मरण का चक्र रुक जाता है, क्योंकि उसकी मूल में उसने पलीता लगाया है ।
* आदिनाथ भगवान के जीव ने जीवानंद वैद्य के भव में एक मुनि की भारी सेवा की थी । उन्हों ने कुष्ठ रोग-ग्रस्त एक मुनि को नीरोगी बनाया था । उन्हों ने मित्रों की सहायता से सेवा की थी । गोशीर्ष चन्दन, रत्नकम्बल, लक्षपाक तेल (प्रत्येक का मूल्य एक लाख सोनैये था) इन तीनों वस्तुओं के सम्यग् उपयोग से उपचार किया था । ___ तीर्थंकरो के जीव ऐसे होते हैं ।
इसीलिए तीर्थंकर "आकालमेते परार्थ व्यसनिनः ।" कहलाये
* पापों के प्रायश्चित के लिए (किसको कितना प्रायश्चित दे वह बताने के लिए) ४५ आगमों में छः आगम हैं । इन छ: को छेद-ग्रन्थ कहा गया है । छेद-ग्रन्थों का अध्ययन करने के लिए पर्याय, पद या उम्र नहीं, परन्तु गम्भीरता देखी जाती है। चाहे जितना दबाव हो फिर भी गुप्त बात निकले नहीं, इसे गम्भीरता कहते हैं । उन तीन पुतलियों की कथा में आता है न ? तीन पुतलियों में सबसे अधिक मूल्य कौन सी पूतली का ? जो पूतली अपने पेट में उतारे, बाहर न जाने दे उस पुतली का मूल्य सर्वाधिक कहे कलापूर्णसूरि -
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