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तुरन्त भगवान एवं भगवान की कृपा याद आये और समस्त प्रश्नों के उत्तर मिल जाये ।
शुभ कार्य ही नहीं, शुभ विचार भी भगवान की कृपा से ही आते हैं ।
"एकोऽपि शुभो भावो जायते स भगवत्कृपालभ्य एव ।" ।
एक भी शुभ विचार करने की आपकी शक्ति नहीं है, यदि आप पर प्रभु की कृपा न हो । मन में शुभ विचारों की धारा चल रही हो तब निश्चित रूप से माने कि मुझ पर प्रभु की कृपावृष्टि हो रही है।
* हमारे मन में दोनों का युद्ध चलता है, शुभ एवं अशुभ दोनों विचार भीतर उत्पन्न होते रहते हैं । जहां अपनी शक्ति जुड़ती है, उसकी विजय होती है।
अधिकतर हमने अशुभ को ही शक्ति प्रदान की है। कुरुक्षेत्र में कौरव हार गये थे और पाण्डव विजयी हुए थे । हमारे मन के कुरुक्षेत्र में कौरव (अशुभ विचार) विजयी हो रहे हैं और पाण्डव (शुभ विचार) हार रहे हैं ।
__ अशुभ विचारों से अशुभ कर्म, अशुभ कर्मों से पाप, पाप से दुःख आते हैं । अपने दुःखों का सृजन अपने ही हाथों हो रहा है ।
आश्चर्य है न ? फिर भी हम अपने दुःखों के लिए दूसरों पर दोषारोपण करते हैं ।
हम नियन्त्रण करने का प्रयत्न करें फिर भी अशुभ विचार आ जायें तो क्या करें ? मन हाथ में नहीं रहता हो तो क्या करें ?
शास्त्रकार उपाय बताते हैं कि तुरन्त अशुभ विचारों की गर्दा करें, उन्हें निकाल दें । शास्त्रीय भाषा में यह दुष्कृत गर्दा कहलाती है । जिन दुष्कृतों की आप गर्दा करते हैं, वे आपकी आत्मा में गहरी मूल जमा नहीं सकते । फलतः आपको पाप एवं दुःख का भागीदार बनना नहीं पड़ता ।
अशुभ विचार बद्धमूल बन गये हों तो वे आपको अवश्य ही अशुभ कार्यों की ओर खींच ले जाते हैं । फिर आप इन पर नियंत्रण नहीं कर सकते । आप देखते रहें और वे बद्धमूल
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