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व्याख्यान के लिए मेरा प्रथम चातुर्मास जामनगर प्लोट में हुआ । उस समय व्याख्यान में अध्यात्मसार पढ़ा उसमें तीसरा अधिकार है दम्भ त्याग । आराधक को दम्भ एवं दिखावे का त्याग करना ही पड़ता है । यदि दम्भ, दिखावा और ढ़ोंग चालु रहे तो आप आराधक कैसे बन सकते हैं ? जामनगर में कोंग्रेसी नेता प्रेमजीभाई सामने ही रहते थे । उन्हें इसमें (अध्यात्मसार में) विशेष रुची थी ।
दूसरे चातुर्मास में (जामनगर - पाठशाला में) वैराग्य कल्पलता पढ़ा । वि. संवत् २०२२ में भुज में 'ज्ञानसार', बाद में 'उत्तराध्ययन', आचारांग, सूयगडंग इत्यादि व्याख्यान एवं वाचना रहे ।
व्याख्यान देने से पूर्व ये सूत्र देखना पड़ता है, सोचना पड़ता है, लोकभोग्य भाषा में परोसना पड़ता है, जिससे यह सूत्र बोलने वाले के लिए कितना दृढ हो जाता है ? कितना लाभ हो जाता है ?
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चैत्यवन्दन सूत्र में आता एक 'जग चिन्तामणि' सूत्र भी कितना अद्भुत है ? 'जगचिन्तामणि' सूत्र अर्थात् स्थावर-जंगम तीर्थ की भावयात्रा । कितनी अधिक यात्रा करा दी गई है इस सूत्र में ?
प्रतिमा में साक्षात् भगवान की बुद्धि उत्पन्न न हो तब तक आपके चैत्यवन्दन में प्राणों का संचार नहीं होगा ।
लोगस्स की आराधना
'लोगस्स कल्प' में प्रथम गाथा पूर्व दिशा में जिनमुद्रा में १४ दिन उसके बीज मंत्रों सहित १०८ बार गिनने का विधान है । तदनुसार गिनने से और उसके उपसंहार रूप छठी गाथा बैठकर १०८ बार गिनने से एक प्रकार की अद्भुत शान्ति की अनुभूति होती है ।
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कहे कलापूर्णसूरि- २)