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________________ दण्डित होते हैं । यहां भी इसी तरह दण्डित होना पडता है । * सिंह जब तक अपना सिंहत्व न जाने तब तक भले ही बकरी की तरह 'बें-बें' करता रहे, परन्तु जब अपना सच्चा स्वरूप जान लेता है तब गर्जना करके पिंजरा तोड कर भाग जाता है । जब हम अपना सच्चा स्वरूप जान लें तब कर्मों के बकरे हमारे समक्ष ठहर नहीं सकेंगे । * "गिरिवर दर्शन फरसन योगे..." ___- निन्नाणवे प्रकारी पूजा इस पंक्ति का अर्थ अच्छी तरह समझें । सच्चे अर्थ में सिद्धाचल गिरि का स्पर्श कब होता है ? आत्मा की स्पर्शना के साथ सिद्धगिरि की स्पर्शना संकलित है । आत्मा की स्पर्शना की बातें तो मैं अनेक करता हूं, परन्तु मुझे भी अभी तक स्पर्शना नहीं हुई । हां, तीव्र रूचि अवश्य है। इसके लिए ही भगवान को पकड़े हैं । मेरी पूर्णता भले प्रकट नहीं है, परन्तु मेरे भगवान की पूर्णता पूरी तरह प्रकट हो चुकी है । उस भगवान पर विश्वास हैं । गुरु का ज्ञान अगीतार्थ शिष्य के काम आता है तो भगवान की पूर्णता भक्त के काम नहीं आये ? प्रभु के प्रति यदि पूर्ण समर्पण भाव हो तो उनकी पूर्णता भक्त को अवश्य मिलेगी । मालशीभाई ! आपकी धनराशि से कितने ही लोग करोड़पति बने हैं न ? आप जैसों से भी लोग करोड़पति बनते हों तो भगवान के सहारे से भक्त भगवान क्यों न बनें ? आपकी सम्पत्ति तो फिर भी कम हो जाये, परन्तु भगवान की भगवत्ता कदापि कम नहीं होती । भले चाहे जितनी ही जाती रहे । तो निश्चय करो कि जब तक अपनी पूर्णता प्रकट न हो तब तक भगवान को छोड़ने नहीं है । नूतन आचार्यश्री - आप लोन दीजिये । पूज्यश्री - यह क्या कर रहा हूं? बोल कर आपको लोन ही दे रहा हूं न ? मैं तो रसोइया हूं । सेठ का (भगवान का) कहे कलापूर्णसूरि - २6666666666660 0 ४१९)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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