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________________ में कोई भार रहा ही नहीं । सर्वथा हलका प्रतीत होता है । कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि मानो शरीर आकाश में उड़ रहा है। यह कोई चमत्कार नहीं है या देव सान्निध्य नहीं है, परन्तु योग-सिद्धि के लक्षण हैं । (देखें, योगशास्त्र १२वां प्रकाश ।) कर्म का बोझ हलका होने पर हलकेपन का अनुभव होता * प्रभु महावीर को सर्वज्ञ के रूप में पहचानने वाले मनुष्यों में सर्व प्रथम इन्द्रभूति गौतम थे । उनकी सर्वज्ञता में, भगवत्ता में श्रद्धा होने के पश्चात् ही इन्द्रभूति में ऐसी विशिष्ट शक्ति उत्पन्न हुई, जिससे अन्तर्मुहूर्त में द्वादशांगी बना सके । भगवान मिलने पर क्या चमत्कार होता है ? इसका उत्कृष्ट उदाहरण इन्द्रभूति गौतम हैं । अभी भगवती में गांगेय प्रकरण आया । पार्श्वनाथ सन्तानीय गांगेय मुनि ने अनेक प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करके भगवान महावीर की सर्वज्ञता निश्चित की । तत्पश्चात् वहां स्वयं को समर्पित किया । सर्वज्ञता की, भगवत्ता की प्रतीति हुए बिना समर्पण हो नहीं सकता । भगवान के दर्शन तो सभी करते हैं, परन्तु भगवान में विद्यमान भगवत्ता के दर्शन करे वही तरता है। * एक बार आप प्रभु की शरण में गये, धर्म की शरण में गये, बस, हो गया । तुम्हारे सब अपराध माफ ! "एसो पंचनमुक्कारो सव्व पावप्पणासणो" आपने चाहे जितने पाप किये हों। समर्पण से क्या फल मिलता है ? इसका यह उल्लेख है । _ 'पंचसूत्र' में उल्लेख है - 'धर्मनायक प्रभु की शरण में जाने से कर्म-प्रकृति शिथिल बनती हैं, हीन बनती हैं, क्षीण बनती हैं । * आज का अनुभव बताऊं? आपको धर्म के प्रति श्रद्धा होगी । पदमावती से ऊपर चलते-चलते सीढ़ियों पर पैरों की अंगुलियां टकराई । मैं फिसल कर गिर पडा । कहां गिरना, यह तो आदमी के हाथों में होता नहीं है । उस समय तो मुझे भी हुआ - अवश्य कुछ हुआ होगा । (४१४ 60amoonamooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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