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उसके बाद मैं दादा के दरबार मे आया । मेरा नियम कि दादा के दरबार में तो चल कर ही जाना । मैं कुर्सी पर से उतर कर चलने लगा । देखा तो कोई पीड़ा नहीं । सब पूछने लगे - 'क्या यहां दर्द है ? वहां दर्द है । कहां दर्द है ? सबको कहता रहा - कहीं भी पीड़ा नहीं है, कहीं लगा नहीं ।
इस प्रकार दो-चार बार गिरा हूं ।
गाय की टक्कर से एक बार भुज में वि. संवत् २०४६ में गिर पड़ा और फ्रैक्चर हो गया । तब से चलना बंद हुआ । डोली आई ।
अभी गत वर्ष वलसाड़ में प्रवेश से एक दिन पूर्व अतुल में गिर पड़ा । कितने ही महिनों तक दर्द रहा ।।
गृहस्थ जीवन में हमारे घर में सीढियाँ गिर जायें ऐसी थी । तनिक ध्यान न रखें तो सीधे नीचे । डेढ़ वर्ष का एक बच्चा लुढ़क कर गिर पड़ा । हम चिन्ता में पड़ गये, परन्तु आश्चर्य यह कि वह बच्चा तुरन्त ही चलने लगा । उसे कहीं भी कोई चोट नहीं लगी थी, मानो प्रभु ने उसकी रक्षा की । यह बात उसे या अन्य किसी को मालूम नहीं है । केवल उस की माता को पता होगा । __यह बालक मुनिश्री कल्पतरुविजयजी हैं ।
'धर्मो रक्षति रक्षितः ।' इस वाक्य पर विश्वास हो वैसी यह घटना है।
किसकी कब मुख्यता ? औदयिक भाव की घटना में उपादान की मुख्यता माने । औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक में पुष्ट निमित्त (प्रभु) की मुख्यता माने ।
(कहे कलापूर्णसूरि - २00moooooooooooooo00 ४१५)