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कितने समय तक भगवान के पास बैठे होंगे ?
यद्यपि, मैं किसी को कुछ कहता नहीं हूं । आखिर आपके भाव की बात है ।
श्री कृष्ण ने घोषणा की, "जो जल्दी श्री नेमिनाथ के पहले दर्शन करके आयेगा, उसे मैं लाक्षणिक घोड़ी दूंगा । शाम्ब ने प्रातः उठते ही बिस्तर पर बैठे-बैठे भाव से भगवान के दर्शन किये । पालक उठ कर अंधेरे में ही सीधा भागा - दर्शन करने ।
भगवान ने कहा, "भाव से प्रथम दर्शन शाम्ब ने किये हैं।" द्रव्य से प्रथम दर्शन पालक ने किये हैं । घोड़ा (अश्व) शाम्ब को मिला ।
अपने दर्शन किसके समान है ? शाम्ब के समान कि पालक के समान ?
* आर्यरक्षित सूरिजी ने आचार्य पद भाई या चाचा आदि को न देकर दुर्बलिकापुष्य को दिया । कारण बताते हुए कहा - 'मेरा सम्पूर्ण ज्ञान ग्रहण करनेवाला यह एक ही है । • गोष्ठामाहिल घी के घड़े के समान ।
मेरे पास बहुत रहा । उसके पास थोड़ा आया । फल्गुमित्र तेल के घड़े के समान । उसके पास बहुत गया तो भी मेरे पास थोड़ा रहा । दुर्बलिकापुष्य वाल के घड़े के समान ।
सभी ग्रहण किया ।" * भगवान अपने भीतर ही बैठे हैं। कोई विरला ही उनके दर्शन कर सकता है ।
"परम निधान प्रगट मुख आगले, जगत उल्लंघी हो जाये ।
ज्योति विना जुओ जगदीशनी, अंधो अंध पुलाय ।"
आनंदघनजी के ये उद्गार अनुभव से ही समझ में आ सकते हैं । भीतर ही परम निधान रूप प्रभु विद्यमान होते हुए भी जगत् के लोग कितने पागल हैं ? ये लोग भीतर विद्यमान प्रभु की सतत उपेक्षा करते रहते हैं और धन आदि बाह्य पदार्थों में शोध चलाते
* कभी-कभी मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मानो शरीर कहे कलापूर्णसूरि - २00woooooooooooooooon ४१३)