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________________ मनुष्यों की ही नहीं, पशुओं की माताऐं भी अपने शिशुओं की संभाल लेती हैं । यह मातृत्व कितना अद्भुत है ? जिस छोटे शिशु को एक-दो दिन तक माता की हूंफ नहीं मिली, वह क्या जीवित रह सकेगा ? बचपन में बालक को माता के प्रति जैसा भाव होता है, वैसा ही भाव भगवान के प्रति हो जाये तो समझ लें कि भक्ति की दुनिया में प्रवेश हो गया है । इस अनुभव की मैं आपको बात कहता हूं । मुझे तो अनेक बार अनुभव होता है कि मैं चलता नहीं हूं, मुझे भगवान चला रहे हैं । आज का ही अनुभव बताऊं । मैं सिद्धाचल पर गिर गया । आप सबको समाचार मिले होंगे । अनेक व्यक्ति पूछने भी आये, परन्तु सबको कितने उत्तर देने ? अतः आज वाचना में ही कह देता हूं, 'मुझे कुछ हुआ नहीं; बचाने वाले भगवान मेरे पास हैं । मैं यदि भगवान की ऐसी शक्ति स्वीकार नहीं करूं तो अपराधी गिना जाऊंगा । मुक्ति मैं नहीं प्राप्त करता, भगवान दे रहे हैं। भक्त को सतत ऐसा अनुभव होता रहता है । * अनेक व्यक्ति कहते हैं उपादान कारण रूप आत्मा ही साधना करती है । भगवान क्या करें उसमें ? भगवान मात्र निमित्त है । अन्तर में भूख होनी चाहिये । भूख उपादान है । भोजन निमित्त है । भोजन बिचारा क्या करे ? जिस प्रकार आपके पेट में भोजन पचाने की शक्ति है, उसी प्रकार से भोजन में भी पचने की शक्ति है । क्या आप यह मानते हैं ? यदि ऐसा न हो तो छिलके अथवा पत्थर खाकर पेट भर लो । हममें तरने की शक्ति है, उस प्रकार अरिहंत में तारने की शक्ति है क्या आप यह मानते हैं ? क्या अरिहंत के बिना किसी अन्य आलंबन से आप तर सकते हैं ? पत्थर खाकर पेट भरा जा सकता हो तो प्रभु के बिना तरा जा सके । पत्थर खाकर तो फिर भी कदाचित् पेट भरा जा सके, परन्तु प्रभु के बिना तरा नहीं जा सकता । आज तक कोई तर नहीं सका । (कहे कलापूर्णसूरि २ क ४११ -
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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