________________
TOM
११ सामूहिक दीक्षा, भुज, वि.सं. २०२८, माघ शु. १४
२५-६-२०००, रविवार आषा. कृष्णा-८ : पालीताणा
* पुष्करावर्त मेघ की तरह प्रभु करुणा-वृष्टि कर रहे हैं ताकि बाह्य-आंतर ताप-संतापों का शमन हो जाये ।
जितनी शक्ति भगवान में है, उतनी ही शक्ति उनके नाम में, आगमों में, चतुर्विध संघ के प्रत्येक सदस्य में हैं; क्योंकि चतुर्विध संघ की स्थापना भगवान के कर-कमलों से हुई है, भगवान ने उसमें शक्ति का संचार किया है ।
इस शक्ति से ही भगवान की अनुपस्थिति में भी भगवान का कार्य सम्पन्न होता रहता है ।
इस शक्ति पर विश्वास न हो तो आप भगवान के साथ अनुसंधान कर नहीं सकते । इसके बिना साधना चाहे जितनी करो, सब व्यर्थ
___"मैं चल नहीं सकता, भगवान ही मुझे मुक्ति-मार्ग पर चला रहे हैं । मैं तो छोटा बच्चा हूं। भगवान माता हैं । असहाय बालक तुल्य मैं माता के बिना क्या कर सकूँगा ?" इस प्रकार की भावना उत्पन्न हुए बिना आप मुक्ति-मार्ग में एक कदम भी आगे बढ़ नहीं सकेंगे ।
[४१० 60mmmmmmmmmmmasoma कहे कलापूर्णसूरि - २)