________________
गुरुदेव अपना कार्य करते रहते हैं । ऐसे गुरु में क्या कभी करुणा के दर्शन हुए ?
* भगवान का प्रेम अर्थात् आत्मा का प्रेम । । भगवान की जानकारी अर्थात् आत्मा की जानकारी । भगवान में रमणता अर्थात् आत्मा में रमणता । "जेह ध्यान अरिहंत को, सो ही आतम ध्यान; भेद कछु इण में नहीं, एहि परम निधान ।"
वह भिखारी नहीं चाहता है फिर भी गुरु उसे यह सब क्यों देते हैं ?
गुरु जान लेते हैं - यह यहां आया, यही इस की योग्यता है । कपड़ों की दुकान पर आये हुए ग्राहक को व्यापारी पहचान लेता है कि यह कपड़े खरीदने के लिए ही आया होगा ।
अभयकुमार को ध्यान आ गया था कि आर्द्रकुमार को मेरे साथ मित्रता करने की इच्छा हुई, यही इसकी योग्यता है । योग्यता के बिना मेरे साथ किसी को मित्रता करने का मन ही नहीं होगा ।
गुरु भी इस प्रकार जानते होते हैं । इसीलिए कुछ अपने आप भी देने का उद्यम करते रहते हैं ।
* साहुकार मनुष्य गांव छोड़कर जाते समय समस्त ऋण चुका कर जाता है। उस प्रकार हमें भी यह देह छोड़ने के अवसर पर सभी पापों की आलोचना कर के शुद्ध बनना है ।
पता लगता है... १. आचारों से कुल का । २. शरीर से भोजन का । ३. संभ्रम से स्नेह का । ४. भाषा से देश का ।
(कहे कलापूर्णसूरि - २ 600wwwwwwww6600000 ४०९)