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________________ लाकड़िया के भाई ने कहा 'मैं पैदल चल कर पालीताणा जाना चाहता हूं ।' उसे कहा गया, 'चलो, हम चित्रोड़, गागोदर होकर आगे जायें ।' "नहीं, मैं रहूंगा तो यहीं । चित्रोड़ - बित्रोड़ कहीं भी नहीं आऊंगा । हां, मुझे जाना है, पैदल चल कर पालीताणा, परन्तु रहना है लकड़िया में ।' ऐसे मूर्ख को क्या कहें ? पालीताणा जाना है, परन्तु लाकड़िया छोड़ना नहीं है । अपनी दशा ऐसी है । मोक्ष में जाना है, परन्तु मोक्षमार्ग की ओर एक कदम भी चलना नहीं है । सिद्धि चाहिये, परन्तु साधना करनी नहीं है । शिखर पर पहुंचना है, परन्तु तलहटी छोड़नी नहीं है । क्षमा प्राप्त करनी है, परन्तु क्रोध छोड़ना नहीं है । मुक्ति प्राप्त करनी है परन्तु संसार का त्याग नहीं करना है । * ज्ञानी पुरुषों का प्रश्न है आपमें सच्चे अर्थ में मुक्ति की रूचि जागृत हुई है ? 'मोक्ष में जाना है' इसका अर्थ क्या ? क्या यह आप जानते हैं ? मोक्ष में जाना अर्थात् भगवान के साथ एकाकार हो जाना । हम मोक्ष- मोक्ष करते रहे, परन्तु भगवान को पूर्णतः भूल गये । * सबको जला देने वाले चंडकौशिक के पास भगवान क्यों गये ? वह भी बिना बुलाये गये । गये तो भी वह स्वागत तो नहीं करता, परन्तु फुफकार मार कर डंक मारता है । फिर भी करुणासागर भगवान वहीं खड़े रहे । चंडकौशिक के पास खड़े हुए उन भगवान को आप मानस दृष्टि से देखें । आपको करुणामूर्त्ति जगदम्बा के दर्शन होंगे । गुरु भी अपनी इच्छा नहीं होते हुए भी कई बार ऐसा करते हैं । ज्ञान) 'तत्त्व प्रीतिकर' पानी पिलाते है । ( सम्यग् दर्शन) 'विमलालोक' नामक अंजन आंखों में लगाते हैं । (सम्यग् 'परमान्न' नामक भोजन (सम्यक् चारित्र) खिलाते है । अंधे एवं रोगी भिखारी जैसे हम नहीं... नहीं करते रहते हैं और करुणामूर्त्ति कहे कलापूर्णसूरि- २ ४०८
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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