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________________ प्रेम दोगे तो प्रेम मिलेगा । कटुता दोगे तो कटुता मिलेगी । * लोगों को जीतने का वशीकरण मंत्र बताऊं ? 'न हीदृशं संवननं, त्रिषु लोकेषु विद्यते ।। दया मैत्री च भूतेषु, दानं च मधुरा च वाक् ॥' नीतिशास्त्र कहता है - जीवो पर दया रखें, मैत्री रखें, दान दें और मधुर वाणी बोलें । तीनों लोकों में इसके समान कोई अन्य वशीकरण मंत्र नहीं है । * रोटी-कपड़े-मकान के अभाव से संतप्त लोगों पर करुणा करने वाले अनेक हैं, परन्तु मिथ्यात्व आदि से ग्रस्त लोगों पर करुणा करने वाले केवल भगवान हैं । * भगवान हमारे भीतर स्वयं की भगवत्ता देखते हैं। भगवान की दृष्टि से हम पूर्ण हैं। भगवान पूर्ण रूप में देखते हों तो वह पूर्णता क्यों न प्रकट करें ? प्रकट करने का प्रयत्न क्यों न करें ? मालूम हो जाये कि घर में निधान हैं तो क्या आप खोदने का प्रयत्न नहीं करेंगे ? निश्चय दृष्टि से अपनी पूर्णता पर विश्वास नहीं करना मिथ्यात्व है । स्वयं को अपूर्ण मानना मिथ्यात्व है। हम स्वयं को अपूर्ण मानकर दीन बनते हैं । यदि पूर्णता की ओर दृष्टि जाये तो दीनता कैसे रहेगी ? निश्चय से स्वयं को पूर्ण देखो । व्यवहार से स्वयं को अपूर्ण देखो । ___ यदि स्वयं को अपूर्ण देखोगे, कर्मों से घिरे हुए देखोगे तो ही कर्म हटाने के लिए प्रयत्न प्रारम्भ होंगे । पहले से ही स्वयं को पूर्ण रूप में देखोगे तो कर्म हटाने का पुरुषार्थ कैसे हो सकेगा ? इसीलिए पहले व्यवहार में निष्णात बनकर फिर निश्चय में जाना है । तालाब में तैरना सीखकर ही समुद्र में कूद सकते हैं, सीधा ही समुद्र में नहीं कूद सकते । सीधे ही निश्चय में गये वे गये ही । डूब ही गये, पथ-भ्रष्ट हो गये । * समकित के ६७ भेद बताये हैं । "सडसठ भेदे जे अलंकरियो, ज्ञान चारित्र- मूल । (४००60mmmmomoooooooom कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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