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________________ कोई पीछे से चढ़ता है । परन्तु दादा के दरबार में सब साथ । यहां भी मार्ग भले अलग दिखाई दे, परन्तु परब्रह्म रूप मुक्ति में सब एक । अतः कोई भिन्न पद्धति से उपासना करता हो तो उसका तिरस्कार नहीं करें। किसी का भी तिरस्कार नहीं करना चाहिये । हमसे उच्च भूमिका वाले का जैसे बहुमान करना है तो नीची भूमिका वाले का तिरस्कार नहीं करना है । उस पर करुणा चाहिये । भले उसमें अनेक दुर्गुण, दोष हों, परन्तु उससे क्या हुआ ? हम जब उसकी भूमिका में थे तब कितने दोषों से परिपूर्ण थे ? * दूसरों के दोष देखेंगे तो वे दोष हममें आयेंगे । गुण देखेंगे तो वे गुण हममें आयेंगे । क्या चाहिये ? यदि गुण चाहिये तो गुणों का स्वागत करो । दोष चाहिये तो दोषों का आदर करो । जिसे आदर दोगे वह आयेगा । हमारे गुणों पर आवरण है, परन्तु भगवान के तो सभी गुणों परसे आवरण हट गया है । उनके गुण गाने से हमारे भीतर गुण प्रकट होंगे । प्रभु का गान करो, ध्यान करो, उनमें खो जाओ । गुणों का आपमें अवतरण होगा । प्रभु एवं हममें कोई अन्तर नहीं है । केवल आवरण का अन्तर है । आवरण दूर करने के लिए प्रभु के पीछे पागल बनो । प्रभु के पीछे आप पागल बनो, दुनिया आपके पीछे पागल बनेगी । प्रभु के आप दास बनो, दुनिया आपकी दास बनेगी । आधोई में कान्ति भट्ट नामक पत्रकार ने पूछा था, "क्या आपने कच्छ-वागड़ की जनता पर कोई वशीकरण किया है, जिससे लोग दौड़े आते है ?" मैंने कहा, "मैं कोई वशीकरण नहीं करता, लोगों को प्रभावित करने का प्रयत्न भी नहीं करता । हां, लोगों को मैं चाहता हूं ।" जो दोगे वह मिलेगा । कहे कलापूर्णसूरि २wwwwww ७०० ३९९
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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