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ज्ञान बढ़ने के साथ समकित निर्मल होता जाता है । समकित निर्मल बनने पर ज्ञान सूक्ष्म बनता जाता है । समकित निर्मल कैसे बने ? अरिहंत की भक्ति से निर्मल बने ।
यह लिखा,
"जिम जिम अरिहा सेविए रे, तिम तिम प्रगटे ज्ञान सलूणा ।"
है ।
परन्तु
"जिम जिम पुस्तक वांचिए रे, तिम तिम प्रगटे ज्ञान ।"
यह नहीं लिखा ।
* इस समय भगवती में गांगेय प्रकरण में भंगजाल चलता है । गांगेय के प्रश्न के उत्तर में भगवान उत्तर देते हैं, जिससे गांगेय ऋषि को (जो पार्श्वनाथ संतानीय थे) प्रतीति होती है कि ये महावीर प्रभु ही सर्वज्ञ हैं ।
उस युग में सर्वज्ञता का दावा करने वाले अन्य भी बहुत (बुद्ध, पूरणकाश्यप, अजित केशकंबली, संजय वेलट्ठी, गोशालक आदि) थे, जिनमें सामान्य मनुष्य असमंजस में पड़ जाये, परन्तु प्रश्नोत्तरी से गांगेय ऋषि निःशंक बने और चातुर्याम में से पंच महाव्रत रूप धर्म स्वीकार किया ।
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विभिन्ना अपि पन्थानः समुद्रं सरितामिव । मध्यस्थानां परं ब्रह्म, प्राप्तुवन्त्येकमक्षयम् ॥ जूदा-जूदा नदी मार्गो, मले एकज अब्धिने । मध्यस्थना जूदा मार्गो, मले एकज मुक्ति ने ।
'नदियों के मार्ग अलग, परन्तु सभी नदियों का मुकाम एक समुद्र ।
ही है
नर्मदा पश्चिम की ओर बहती है तो भी समुद्र में मिलती
?
गंगा पूर्व की ओर बहती है तो भी समुद्र मे मिलती है । यहां सिद्धाचल पर देखो न ? कोई यहां से चढ़ता है,
कोई घेटीपाग से चढ़ता है, कोई रोहिशाला से चढ़ता है,
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ॐ कहे कलापूर्णसूरि - २)