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गलौज, झगड़ा, उत्कट कषाय ये नरकगति के कारण हैं । बोलो, नरक में जाना है ?
माया, खाने की वृत्ति, शल्य युक्त जीवन तिर्यंच गति के कारण
हैं ।
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मध्यम गुण, अल्प कषाय, दान- रुचि, परोपकार मनुष्य गति के कारण हैं ।
बाल तप, सराग, संयम, अज्ञान - कष्ट ये सब देवगति के कारण हैं । हमें कहां जाना है ?
किसी के कारण हमें अपनी आत्मा की दशा क्यों बिगाड़नी ? यह संयम जीवन इसलिए नहीं लिया ।
* पहले शरीर को कृश करना है । फिर कर्मों को, कषायों को कृश करना हैं । अनेक बार हम भूल जाते हैं काया को कृश करने का प्रयत्न करते हैं, परन्तु कषायों को कृश करने की बात भूल जाते हैं ।
अभ्यंतर तपका लक्ष्य छोड़कर केवल बाह्य तप करने वालों की यह बात है । बाकी जिनकी शक्ति है, जिनका लक्ष्य शुद्ध है, उनकी यह बात नहीं है ।
कोई भी बात एकांगी नही बननी चाहिये, ध्येय भूला जाना नहीं चाहिये । अतः यह सब मैं कह रहा हूं ।
३९६ कळ
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* भगवान की भक्ति के बिना, गुरु की सेवा के बिना समकित नहीं मिलता । यदि मिला हुआ हो तो वह टिकता नहीं है । यह आप वज्र के अक्षरों से लिख रखें ।
इसी लिए अतिचारों में देव एवं गुरु की आशातना हुई हो तो उसके लिए मिच्छामि दुक्कडं मांगने में आता है ।
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