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________________ मोह राजा को पता है कि यह सभा अर्थात् मुझे समाप्त करने की छावनी । इस छावनी पर आक्रमण करना ही है । निद्रा देवी को भेज कर वह आक्रमण करता है । मोह राजा की यह चाल समझ लेना । हम कितने विचित्र हैं ? आगे के स्थान पर बैठने के लिए दौड़-धूप करते हैं, परन्तु वहां बैठ कर नींद आ जाये, उसकी परवाह करते नहीं हैं । आगे बैठते हैं वह सुनने के लिए बैठते हैं कि अहंकार के पोषण के लिए बैठते हैं ? अपने हृदय को पूछ लेना । जानने के लिए बैठते हैं कि बताने के लिए ? । बताने के लिए बैठते हैं कि जीने के लिए ? हृदय को पूछ लेना । इस प्रकार प्रश्नोत्तरी करने से जो सच्चा उत्तर आयेगा वह अपना शुद्ध प्रणिधान होगा । * हम साधु-साध्वी कितनी उच्च कक्षा पर हैं ? इतनी उच्च भूमिका पर पहुंचने के बाद भी कषाय करते रहें, झगडा करते रहें, वह कैसा ? झगडा करते हैं तो उस समय सोचो, मैं स्वयं को तो दुर्लभ-बोधि बनाता ही हूं, परन्तु दूसरों को भी दुर्लभबोधि बनाता हूं। क्योंकि यह देखकर अनेक व्यक्ति साधु-साध्वीयों की निन्दा करेंगे - छि:, जैन साधु ऐसे झगडालू ? __ जिन-शासन की बदनामी के समान अन्य कोई पाप नहीं है। __ आपके मन में प्रश्न उठेगा - वह ज्यों त्यों बोलता रहे तो कहां तक सहन करूं ? फिर तो क्रोध आये ही न ? मैं कहता हूं - सामने वाले का चाहे जैसा स्वभाव हो, परन्तु हम वैसा स्वभाव क्यों बनायें ? वह अपना स्वभाव न छोडे तो हम क्यों छोड़े ? चन्दन को काटो, जलाओ अथवा घिसो, वह अपना स्वभाव नहीं छोड़ता । हमें ऐसा बनना है । सामने वाले की बात यदि सत्य हो तो स्वीकार कर लो । असत्य हो तो उपेक्षा करो । क्रोध करने की क्या आवश्यकता ? गाली-गलौज या झगड़ा करने की क्या आवश्यकता ? गाली-गलौज या झगड़ा करके मैं अपनी आत्मा को दुर्गति में क्यों डालूं ? मांसाहार, पंचेन्द्रिय हत्या, महा-आरम्भ, महा-परिग्रह, गाली(कहे कलापूर्णसूरि - २6666666666 GBROSCO® ३९५)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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