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________________ सातत्य पूर्वक जिस गुण का आप सेवन करते हैं, वह गुण भवान्तर में भी साथ चलेगा । * जन्म होने के पश्चात् मृत्यु नहीं हुई हो ऐसा एक भी उदाहरण हो तो मुझे बताओ । संक्षेप में, मृत्यु निश्चित है । आज या कल मरना ही है। परन्तु किस तरह मरना है ? यह लाख रुपयों का प्रश्न है । जन्म का एक ही प्रकार है, परन्तु मृत्यु के हजारों प्रकार हैं । कौन से प्रकार से मृत्यु होगी यह निश्चित नहीं है, परन्तु मृत्यु आयेगी यह तो निश्चित ही है । हमें तो अब इतना ही विचार करना है कि मेरी मृत्यु समाधिमय कैसे बने ? उसके लिए तैयारी अभी शुरु कर देनी चाहिये । जिसका जीवन आराधनामय होगा, उसे ही मृत्यु में समाधि मिलेगी । चाहे जैसा जीवन जीकर मृत्यु में समाधि रखकर सद्गति में चले जायेंगे, इस भ्रम में मत रहना । यहां रही हुई साधना अपूर्ण रहे तो भी चिन्ता न करें। भवान्तर में वह साधना पुनः प्रारम्भ होगी । आप देखते हैं न ? कुछ व्यक्ति थोड़ा सा प्रयत्न करके गाथा कंठस्थ कर लेते है । दूसरे लाख सिर पटकते हैं तो भी कर नहीं सकते । क्या कारण है ? कुछ व्यक्ति स्वभाव से ही शान्त होते है। कितनेक स्वभाव से ही क्रोधी होते है । क्या कारण है ? वर्तमान विज्ञान कदाचित् जिनेटिक थियरी में उत्तर ढूंढने का प्रयत्न करेगा, परन्तु पुनः प्रश्न तो खड़ा ही रहेगा - ऐसे ही जीन्स क्यों मिले ? पूर्व जन्म के कर्म मानने ही पडेंगे । पूर्व जन्म की आराधनाविराधना के कारण ऐसा अन्तर प्रतीत होता है । * बोलो, यहां कितने व्यक्ति नींद करते हैं ? नींद यहीं पर आती है। मोह राजा निद्रा देवी को ऐसे स्थानों पर ही भेजता है । (३९४ 0000000 woman sewa aao कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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