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याद रहे, झगडा करते रहोगे, परस्पर ईर्ष्या करते रहोगे तो कुत्ते बनना पड़ेगा । कुत्ते ईर्ष्या के प्रतीक हैं ।
जो व्यक्ति यहां हृदय से कुत्ता बनता है, वह आगामी जन्म में कुत्ता बनता है। कर्मसत्ता की सीधी बात है, जो प्रिय है वह दे दूं । आप को ईर्ष्या एवं झगडा प्रिय है तो ऐसे जन्म दूं जहां ईर्ष्या-झगड़े स्वाभाविक ही होते हैं ।
हमें सदा इच्छित ही प्राप्त हुआ है । विषय-कषाय प्रिय लगे तो, विषय-कषाय मिलेंगे ।
विषय-कषाय रहित अवस्था प्रिय लगी तो वह मिलेगी । चाहे जो मिले । __ मोक्ष नहीं मिला क्योंकि वह कदापि प्रिय नहीं लगा । संसार मिलता रहा है, क्योंकि वही प्रिय लगता रहा है ।
क्या ऐसा जन्म पाकर कुत्ते बनेंगे ? पुनः ऐसा अवसर कब आयेगा ?
अभी भगवती सूत्र में गांगेय प्रकरण चल रहा है, जिसमें भांगाओं की जाल है। इसमें से जीव किस-किस तरह से कितनेकितने भांगे नरक आदि गति में जाते हैं, यह बताया है । यदि हम यहां ईर्ष्या-झगडे करते रहे तो यह जन्म खो देंगे और संसार में दीर्घ-काल तक भटकते रहेंगे ।
* आप को किस गुण की त्रुटि लगती है ? जिस गुण की आपको त्रुटि प्रतीत होती है, वह गुण अन्यत्र आपको कहां दिखाई देता है ? जिस स्थान पर दिखाई देता हो, उसे देख कर प्रसन्न होओ, हृदय से नाच उठो । वह गुण आपमें आयेगा ही ।
जिस गुण को देख कर आप प्रसन्न होते हैं, उस गुण के आने के लिए आप अपने अन्तर के द्वार खुले रखते हैं । दूसरे शब्दों में कहूं तो गुणों को देख कर प्रसन्न होना अर्थात् उन्हें निमंत्रण-पत्रिका लिखनी ।
इसे ही शास्त्रकारों ने अनुमोदना कही है । __अनुमोदना बढ़ने के साथ वह गुण सुदृढ होता जायेगा । ऐसा सुदृढ बनेगा कि भवान्तर में भी नहीं जायेगा ।
शर्त इतनी कि उसमे आदर एवं सातत्य चाहिये । आदर एवं
कहे कलापूर्णसूरि - २00000ooooooooooooom ३९३)