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________________ आत्मा याद आने के पश्चात् उसके छः स्थानों के विषय में विचार करना है आत्मा है । I १. २. ३. ४. ५. ६. आत्मा नित्य है । आत्मा कर्म की कर्त्ता है । आत्मा कर्म की भोक्ता है । मोक्ष है । आत्मा का उपाय है । यह समस्त चिन्तन भगवान की कृपा से ही मिलता इन्द्रभूति गौतम आत्मा के विषय में शंकित थे । भगवान को मिलने से पूर्व क्या समकित था ? भगवान मिलने के बाद ही समकित मिला है । यह भगवान का प्रभाव है । भगवान के बहुमान के बिना ऐसे गुणों की प्राप्ति नहीं होती । मेरी अन्य बातें भले आप भूल जायें, याद नहीं रख सकें । केवल इतना ही याद रखें कि भगवान के प्रति बहुमान उत्पन्न करना है । भगवान के प्रति बहुमान होगा तो अन्य सब स्वतः ही हो जायेगा । सर्व प्रथम माता-पिता का बहुमान करो । माता-पिता का बहुमान गुरु का बहुमान उत्पन्न करेगा । गुरु का बहुमान शास्त्र एवं भगवान का बहुमान उत्पन्न करेगा । भगवान का बहुमान होने पर समझें कि मुक्ति की और प्रयाण प्रारम्भ हो गया है । भगवान का बहुमान अर्थात् अंततोगत्वा हमारी ही परम चेतना का बहुमान । मोक्ष की ओर प्रयाण अर्थात् अपनी ही परम चेतना की ओर प्रयाण । चैत्यवन्दन आदि क्रिया परमात्मा के प्रति बहुमान की ही क्रिया है । हमने उसे दैनिक क्रिया में समाविष्ट कर दी, उसे केवल यान्त्रिक बना दी । आप यह देखना भूल गये कि इसमें मेरी ही परम चेतना को विकसित करनेवाले परिबल छिपे हुए हैं । ३८८ WWW wwwwwww कहे कलापूर्णसूरि - २
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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