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में प्रतिबिम्बित हैं या नहीं ? चैत्यवन्दन करते समय यदि यह भाव आये उल्लास में कितनी वृद्धि हो जाये ?
भगवान में तो हम प्रतिष्ठित हैं ही, परन्तु भगवान हमारे भीतर कितने अंशो तक प्रतिष्ठित है ? हमारा चित्त जितना निर्मल होगा, उतने अंशों में भगवान हमारे चित्त में प्रतिबिम्बित होंगे । भगवान को लाना चाहो तो चित्त को निर्मल करते रहें ।
यह बात मैंने आपके समक्ष रखी है। गलत हो तो कहें । आप गीतार्थ हैं । मैंने वि. संवत् २०२८ में यह बात पू.पं. भद्रंकरविजयजी म.सा. के पास भेजी थी । पं. भद्रंकरविजयजी ने चन्द्रशेखर विजयजी के पास भेजी । उन्होंने भी पं. भद्रंकरविजयजी म. के नाम के साथ पुस्तक में रखी ।
* "पंचसूत्र" अर्थात् साधना का सार । 'पंचसूत्र' को सामने रख कर १४४४ ग्रन्थ लिखे हों ऐसा प्रतीत होता है ।" पू.पं. भद्रंकरविजयजी म. यह बात अनेक बार कहते थे ।
'पंचसूत्र' के तीन पदार्थ (शरणागति, दुष्कृतगर्हा, सुकृतअनुमोदना) भावित किये बिना कोई भी साधना सफल नहीं होती, चाहे कोई नौ पूर्व का अध्ययन कर ले ।
ये तीन पदार्थ ही दुर्लभ हैं, अन्य सब सुलभ हैं । "मले सोहिला राज्य देवादि भोगो, परं दोहिलो एक तुझ भक्तियोगो ।"
भक्ति भूला दी गई तो ध्येय भूला दिया समझें । ध्येय भूलने पर हम कोई गलत मार्ग पर चढ़ जायेंगे ।
__ कोई भी शास्त्र पढ़ते हुए या क्रिया करते हुए इस ध्येय को कदापि नहीं चूकें ।
* 'पंचसूत्र' में क्या लिखा है ? होउ मे एएहिं संजोगो, होउ मे एसा सुपत्थणा, भगवान एवं गुरु के साथ मेरा संयोग हो । मेरी यह सुप्रार्थना हो ! केवल प्रार्थना नहीं, परन्तु 'सु-प्रार्थना' कहा । अनेक बार अतिथियों को औपचारिकता के खातिर भी निमन्त्रण
(३८२0000000000000000000000 कहे कलापूर्णसूरि - २)