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________________ का प्रकाश कैसे भीतर आयेगा ? भगवान तो गुणों के रूप में सर्वत्र व्याप्त हैं ही । देखो, भक्तामर में - "संपूर्ण-मंडल शशांक कला-कलाप शुभ्रा गुणास्त्रिभुवनं तव लंघयन्ति ।" "भगवन् ! चन्द्रमा के समान तेरे शुभ गुण तीनों लोकों में फैल गये हैं ।" इस प्रकार भगवान गुणों एवं ज्ञान से व्यापक है । इस अपेक्षा से भगवान् कहां नहीं हैं ? जहां जहां प्रकाश है, वहां वहां सूर्य है ही । वहां से आप देखो, सूर्य दिखाई देगा । जहां-जहां गुण हैं, वहां-वहां भगवान हैं ही । गुण-गुणी का अभेद है । तदुपरान्त भगवान समुद्घात के चौथे समय में आत्म-प्रदेशों से सर्व लोक-व्यापी बनते ही हैं । सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में फैलने वाले भगवान हमारे घर में भी आते ही हैं न ? हम यह जानते हैं, फिर भी भगवान का अन्तर्यामित्व हम मानने के लिए तैयार नहीं है । भगवान चाहे समुद्घात अपने लिए (कर्म क्षय के लिए) करते हों, परन्तु हमारे लिए यह घटना अत्यन्त उपयोगी है । जैनेतर दर्शनों में भगवान देह रूप में भक्त के पास आते हैं, परन्तु यहां समुद्घात में तो आत्म-प्रदेशों से विश्व के समस्त जीवों को मानो मिलने के लिए आते हैं । 'शकस्तव' में भगवान का एक विशेषण है - विश्वरूपाय - भगवान विश्व रूप है । भगवान ने हमसे कदापि भिन्नता नहीं रखी, हमने अवश्य रखी है। मां ने पुत्र के साथ कदापि जुदाई नहीं रखी, पुत्र ने अवश्य रखी होगी । भगवान तो सम्पूर्ण विश्व की माता है, जगदंबा है । जगत् की मां मोक्ष में जाने से पूर्व हमें मिलने के लिए क्यों नहीं आती ? यह जानोगे तो भगवान का अपार वात्सल्य समझ में आयेगा । भगवान के पास केवलज्ञान का विशाल दर्पण है, जिसमें तीनों कालों का विश्व प्रतिबिम्बित है । तो भक्ति करके हम भगवान (कहे कलापूर्णसूरि - २0mammonomosomnonyms ३८१)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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