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________________ सतत चाल एक भतारना यह काम हेमांजलि उद्घाटन, सुरेन्द्रनगर, वि.सं. २०५६ २०-६-२०००, मंगलवार ज्ये. कृष्णा-३ : पालीताणा आज हिमालय बद्रीनाथ में प्रतिष्ठित होनेवाले श्री आदिनाथजी भगवान रथ में आये थे । सकल संघ के साथ दर्शन किये । अंजनशलाका पूज्य आचार्य यशोवर्मसूरि के द्वारा हुई है । प्रतिष्ठा पूज्य जंबूविजयजी के द्वारा सावन में होगी । मूर्त्ति पंचधातुओं से निर्मित है । ५४ तोला स्वर्ण उसमें काम में लगा है । * भक्ति भक्त को खींच लाती है । आपने अभी ही देखा न ? मानो सामने से भगवान मिलने आये हों । मूर्त्ति में भगवान के दर्शन करोगे तो निहाल हो जाओगे । मुनि जंबूविजयजी म. इतने विद्वान होते हुए भी उनकी आप भक्ति देखें तो चकित हो जायेंगे । - प्रश्न * 'आत्मा सामायिक है ।' शास्त्र में ऐसा उल्लेख है तो सभी आत्मा सामायिक नहीं बन जायें ? उत्तर - भले बन जायें; संग्रहनय से वैसे है ही । संग्रहनय अपनी हताशा मिटाने के लिए ही है, परन्तु यह पूर्णाहुति नहीं है । एवंभूत नय जब तक हमें परमात्मा न कहे तब तक रूकना नहीं है । कहे कलापूर्णसूरि २ ०००० ३७९
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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