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को पकड़ने के लिए सांडसे घर में रखते हैं । हमारे मन के घर में कषाय रूपी बिच्छु-सांप आ जायेंगे तब क्या करेंगे ? चीमटा एवं सांडसा के स्थान पर हमें चार शरण स्वीकार करने पड़ेंगे ।
अरिहंत आदी चार शरणों से चार कषाय नष्ट होंगे । अरिहंत के शरण से क्रोध, सिद्ध के शरण से मान, साधु के शरण से माया, धर्म के शरण से लोभ जायेगा । शरणागति के प्रभाव से हमारे कर्म क्षय होते हैं, शिथिल होते
हैं
"सिढिलीभवंति परिहायंति खिज्जंति असुहकम्माणुबंधा ।"
- पंचसूत्र * बारह महिनों के पर्याय में तो साधु का सुख अनुत्तर विमान के देव के सुख से भी बढ़ जाता है । ज्यों ज्यों लेश्या विशुद्ध बनती जाती है, त्यों त्यों उसकी मधुरता बढ़ती जाती है।
कृष्ण-नील-कापोत लेश्या कड़वी होती हैं । तेजो-पद्म-शुक्ल लेश्या मधुर होती हैं ।
इन लेश्याओं के कडवाहट एवं मिठास का वर्णन उत्तराध्ययन में स्पष्ट रूप से किया गया है ।
लेश्या की विशुद्धता से आत्मिक माधुर्य बढ़ता जाता है ।
अपने आनन्द का माधुर्य बढ़ना चाहिये । सच कहें - जीवन में मधुरता बढ़ रही है कि कडवाहट बढ़ रही है ? कडवाहट बढ़ रही हो तो समझें कि हमारी लेश्याएं अशुभ हैं । हमारा आभामण्डल विकृत है । मधुरता एवं आनन्द बढ़ते हों तो समझें कि भीतर का लेश्यातंत्र शुभ बना है, आभा-मण्डल तेजस्वी बना है।
इसके लिए अन्य किसी को पूछने की आवश्यकता नहीं है । आपकी आत्मा ही इसकी साक्षी बनेगी ।
लेश्या विशुद्ध कब बनती है ? ज्यों ज्यों हमारे कषाय निर्बल बनते जाते हैं, त्यों त्यों लेश्याएं विशुद्ध होती जाती हैं। हम कषायों को पुष्ट रखकर जीवन मधुर बनाना चाहते हैं । हम बबूल बोकर आमों की आशा रखते हैं । कहे कलापूर्णसूरि - २0050005000 ३७५)