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हैं । इनका हम उपयोग कर रहे हैं, जिनका बोझ कितना बढ़ता है, क्या यह विचार किया है ?
छोटे से घाव की भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिये । सम्भव है कि छोटी सी फुन्सी भी कैन्सर की गांठ हो सकती है। छोटा सा कांटा भी प्राण-घातक हो सकता है । छोटा घाव भी धनुर्वा (एक भयंकर वात-व्याधि) में बदल सकता है।
छोटी सी अग्नि की चिनगारी का भी विश्वास नहीं किया जाता । सम्भव है वह सम्पूर्ण मकान को, अरे, सम्पूर्ण गांव को जला दे । उस प्रकार छोटे से कषाय का भी भरोसा नहीं किया जा सकता । छोटा सा कषाय भी अनन्त संसार खड़ा कर दे ।
* इन कषायो पर विजय प्राप्त करनी हो तो स्व-बल से विजय प्राप्त नहीं की जा सकती, भगवान का सहारा लेना पड़ेगा।
भगवान हृदय में आते ही चित्त में स्वस्थता आती है, चित्त अभय (निर्भय) बनता है, स्थिर बनता है ।
अभय की प्राप्ति केवल भगवान से ही होती है। हरिभद्रसूरिजी ने 'ललित विस्तरा' में यह स्पष्ट लिखा है।
चित्त को स्थिर करने की आप लाखों प्रक्रिया करें, परन्तु भगवान को पास नहीं रखो तो चित्त कदापि स्थिर नहीं होगा । भगवान मिलते ही चित्त स्थिर हो जाता है । पुण्डरीक कमल प्राप्त होते ही भ्रमर स्थिर हो जाता है, उस प्रकार प्रभु के चरण-कमल प्राप्त होते ही मन स्थिर हो जाता है ।
विनय से विद्या विद्या से विवेक विवेक से वैराग्य वैराग्य से विरति विरति से वीतरागता
वीतरागता से विमुक्ति । यह क्रम है, परन्तु प्रारम्भ तो विनय से ही होगा । यह बात बताने के लिए ही मानो 'नवकार' में सर्व प्रथम 'नमो' रखा गया है । 'नमो' अर्थात् ही विनय । 'नमो' अर्थात् धर्म का प्रवेश-द्वार । इसके बिना आप कहीं से भी धर्म के राजमहल में प्रवेश नहीं कर सकेंगे। (३६४ 000000000000 कहे कलापूर्णसूरि - २)