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पू. कनकरि
११-२-२०००, शुक्रवार माघ शुक्ला - ६ : वांकी तीर्थ
पदवी का प्रसंग
* अनन्त उपकारी शासन-नायक भगवान महावीर स्वामी की मंगल निश्रा में चतुर्विध संघ के साथ हम छः घण्टों से बैठे हैं । अभी भी शायद एक घण्टा और लग सकता है ।
आचार्यपद, पंन्यास - पद, गणि-पद समारोह में जो आनन्द है वह जैन- शासन का है । ये यहीं देखने को मिलता है । वांकी तीर्थ में प्रवेश से ही उल्लास प्रतीत होता रहा है । यह धरती का प्रभाव है । आज चतुर्विध संघ का भावोल्लास देखकर जैन - 3 जयवंत है, ऐसा ख्याल आता है ।
- शासन
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* तीनों काल के कल्पवृक्ष भगवान हैं । भगवान किसी काल में अथवा किसी क्षेत्र में पवित्रता प्रवाहित नहीं करते वैसा नहीं, लेकिन सर्वत्र प्रवाहित करते हैं, जिसके कारण ही अपना हृदय निर्मल स्वच्छ बना है । यहां भगवान के किल्ले में अशुभ भावो का स्पर्श कहां से हो ?
* यहां के स्थानीय विशाल जिनालय के रंगमण्डप में सभी
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कहे कलापूर्णसूरि -