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का समावेश हो जाता है । अतः वहीं पर पदवी-प्रसंग समारोह का आयोजन करने की योजना थी, परन्तु वह नहीं हो सका, फिर भी शंखेश्वर दादा समीप ही हैं ।
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शुभ मनोरथ भी भगवान के हाथ में है । “ एकोऽपि शुभभावः भगवत्प्रसादादेव लभ्यः यह उपमितिकार का कथन है । मन में उमड़ती शुभ विचारधारा प्रभु की सतत कृपा का चिह्न है 1
* रसोइया भोजन कराता है, परोसता है, परन्तु भोजनशाला का वह स्वामी नहीं है । हम भी रसोइये के स्थान पर है । यह सब प्रभु का है । हम तो परोसने वाले हैं । परोसना भी अच्छी तरह आ जाये तो पर्याप्त है ।
* आधोई, कटारिया, भद्रेश्वर में नहीं परन्तु यहां वांकी में ही इस प्रसंग का आयोजन हुआ वह भी शुभ घटना ही है । कार्तिक कृष्णा अष्टमी को एक घंटा पहले पूछा होता तो निर्णय दूसरा ही होता, परन्तु उचित निर्णय कराने वाले भगवान ही हैं ।
आप प्रकृति कहते हैं, मैं तो प्रभु ही कहता हूं ।
मद्रास आदि में ऐसा भावोल्लास कहां से आता ? कच्छ की धरती हमारे पूर्वज आचार्यों की है । ये भाव अन्यत्र कहां देखने को मिलते ?
चढ़ावे सब अधिकतर कच्छ के हैं । एक मद्रास का था । महेन्द्रभाई भी अब ( जाप का अनुष्ठान कराने के कारण) हमारे आत्मीय हो गये हैं ।
* पदवी ग्रहण करने वालों को मेरी विशेष रुप से सलाह है कि किसी भी प्रसंग पर आप निःस्पृह बनें । यदि भगवान का सन्देश लोगों को देना हो तो मांगना मत । पू.पं. भद्रंकरविजयजी म. कहते थे जो अपने आप आये उसका स्वागत करें। खड़ा न करें। किसी भी गांव पर भार स्वरूप न बनें ।
वांकी के लोगों को पूछें । लोगों की भीड़ उमड़ने के कारण भार आता होगा, लेकिन हमारी ओर से कोई भार आया ?
पू. कनकसूरिजी महाराज यहां के गांवो में रहते, लेकिन किसी कहे कलापूर्णसूरि २wwwwwwwwwwwwww. १९