________________
लक्ष्य सिद्ध करना हो तो बाह्य जीवन से पर होना पड़ेगा। * वृद्ध हमारे रक्षक हैं ।
प्रथम चातुर्मास फलोदी में तथा दूसरा राधनपुर में हुआ । उस समय मैंने वृद्ध मुनि को साथ रखने की विनंती की थी ।
* पू. कनकसूरिजी के बाद में समुदाय की दुर्दशा हो गई थी । वृद्ध जानते होंगे । उस समय समुदाय का उत्तरदायित्व मुझ पर आ पडा ।
* 'पुक्खरवरदी' सूत्र में 'सुअस्स भगवओ' कह कर श्रुत को भगवान कहा गया है। श्रुतज्ञान एवं भगवान अभिन्न हैं, जिस प्रकार मैं और मेरे वचन अभिन्न हैं । यदि आप मेरे वचन नहीं मानते तो आप मुझे ही नहीं मानते; क्योंकि मैं और मेरे वचन अलग नहीं हैं ।
* आलोचना के साथ आराधना भी लिखें ताकि मुझे पूरा ध्यान रहे । डाक्टर के पास रोग नहीं छिपाया जाता, उस प्रकार गुरु के पास विराधना अथवा आराधना नहीं छिपाई जाती ।।
* पत्र अत्यन्त ही कम लिखने चाहिये । पू. कनकसूरिजी कहते थे - 'धर्मलाभ ही है, सुख-साता ही है, पत्र क्या लिखने
* एक महात्मा ने जीवन के अन्तिम किनारे पर मुझे लिखा, 'मैंने आलोचना कभी नहीं ली । अब खटक रहा हैं । आप मुझे आलोचना देना ।
हमने लिखा - 'अब आलोचना क्या दें ? गिन सको उतने नवकार गिनो, समाधि में रहो । आपकी आलोचना पूर्ण हो गई ।
दूसरा क्या लिखा जाये ?
आंसू प्रभु-भक्ति, करुणा एवं सहानुभूति से आने वाले आंसू - पवित्र है । शोक, क्रोध एवं दम्भ से बहते आंसू अपवित्र है ।
MO७
(कहे कलापूर्णसूरि - २00mmosomwwwwwwwwwwww १७)