SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पू. रत्नसुंदरसूरिजी के साथ, सुरत, वि.सं. २०५५ १०-२-२०००, गुरुवार माघ शुक्ला-५ : वांकी * साक्षात् भगवान नहीं मिले यह पापोदय है, परन्तु उनके आगम, प्रतिमा मिले यह पुन्योदय है । * हमारा लक्ष्य क्या है ? ' प्रथम सूत्र 'नवकार' सीखे, उसमें सर्व प्रथम रहा हुआ 'नमो' ही लक्ष्य है, यही ध्येय है। चिन्मय तत्त्व के साथ एकता करानेवाला 'नमो' है । जो प्रभु को नमता है वह नमन करने योग्य (नमनीय) बनता है। जो प्रभु की पूजा करता है वह पूजनीय बनता है । जो प्रभु की स्तवना करता है वह स्तवनीय बनता है । ये भगवान ऐसे ही हैं, अपना पद प्रदान करने वाले हैं। 'नात्यद्भुतं भुवनभूषण... !' - भक्तामर स्तोत्र ऐसे स्वामी को छोड़कर क्या चेतना शक्ति का अन्यत्र उपयोग किया जाये ? बात करनी हो तो इन प्रभु के साथ करो । ध्यान करना हो तो इन प्रभु का करो । (१६ mmswwwwwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy