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________________ सम्पूर्ण पानी संभाला था । गोचरी की अपेक्षा पानी वहोराने वाले को अधिक लाभ होता है, क्योंकि पानी सबके पेट में जाता है और वहोरते समय एक ही घड़ा लाना चाहिये । मेहसाना में अपने कोई साधु दो घड़े पानी लाते होंगे । उन्हें देखकर एक श्रावक ने कहा था - 'यह कनकसूरिजी का समुदाय नहीं लगता ।' * सूर्योदय से पूर्व पानी आदि नहीं वहोरा जाता, यह कहना पड़ता है, जो अपनी लज्जा है । * काली द्राक्ष बीज निकाले बिना ४८ मिनिट से पूर्व नहीं कल्पती । * टमाटरों के बारे में मैंने एक बार पूज्य कनकसूरिजी को पूछा था, तब उन्होंने बताया था कि - "मांस के समान रंग के कारण ये वर्जित हैं । दाल-सब्जी में आ जायें तो चलता है।" * जरी वाले स्थापनाचार्य की पाटली रंग-बिरंगे पाटे भरना आदि विचारणीय है। * हमारे वृद्धों, गुरुओं की निन्दा करने वालों के व्याख्यान में जाना, उन्हें वन्दन आदि करना उचित नहीं प्रतीत होता । * बड़ी दीक्षा के जोग, तथा बड़ी दीक्षा स्व-समुदाय में ही होनी चाहिये । जब हम कोइम्बतूर के आसपास थे तब एक ग्रूप ने एक बहन को दीक्षा प्रदान कर दी । दीक्षा, बड़ी दीक्षा, जोग आदि दूसरे के पास करवाये । हम ने कहा, 'ध्यान रखना, भारी उत्तरदायित्व है ।' आज रगड़े-झगड़े, क्लेश आदि प्रारम्भ हो गये हैं । * 'व्हीलचेअर' मैंने तो दुःखपूर्वक अपनाई है, परन्तु अकारण 'व्हीलचेअर' अपनाना उचित नहीं है । * शाम को मांडली में प्रतिक्रमण करना चाहिये । मांडली में प्रतिक्रमण करते हैं न ! प्रातः खड़े-खड़े प्रतिक्रमण करते हैं न ? कहे कलापूर्णसूरि - २00000000000000000000000 १५)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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