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________________ कराना और अनुमोदना से मैं जीवनभर सर्व सावध योगों का त्याग करता हूं और पूर्व में की गई सावध प्रवृत्तियों की निन्दा-गर्दा करके उस पापमय आत्मा का त्याग करता हूं।" यह 'करेमि भंते' का संक्षिप्त भावानुवाद है । ____ 'करेमि भंते' कैसा महान् सूत्र है ? इसकी महानता जानने के बाद प्राप्ति का सविशेष आनन्द होता है। कुमारपाल ने कहा, "बारह व्रतों की प्राप्ति के आगे मुझे १८ देशों की राज्य-प्राप्ति फीकी लगती है।" यहां तो हमें सर्वविरति प्राप्त हुई है । उसका कितना मूल्य अंकित होना चाहिये ? ये महाव्रत, ये सामायिक तो चिन्तामणि की अपेक्षा भी अधिक मूल्यवान हैं । चिन्तामणि से भी अधिक संभालकर उसकी सुरक्षा करें, संवर्धन करें । 'करेमि भंते' की प्रतिज्ञा से सर्व सावध का त्याग होता है। इससे जगत् के समस्त जीव प्रसन्न होते हैं । अभयदान मिलने से कौन प्रसन्न नहीं होता ? १८-२० वर्ष की सुकोमल आयु में आपकी पुत्रियां जब सम्पूर्ण संसार का परित्याग करती हों तब उनके माता-पिता के रूप में आपको विचार करने जैसा नहीं ? ये कुमारिकाएं संसार का सम्पूर्ण परित्याग कर रही हैं, तब आप कुछ तो त्याग करें ताकि सर्व विरति शीघ्र उदय में आये । (कहे कलापूर्णसूरि - २ @@ TO GIGIES RIGIGHTS Choi & Si @ @di ३५५) कहे २60ooooooooooooooooo® ३५५
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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