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________________ अग्नि संस्कार, शंखेश्वर १५-६-२०००, गुरुवार जेठ शुक्ला - १४ : पालीताणा अर्चना, सारिका, जया, रश्मि, उर्वशी तथा मोनल नामक छः कुमारिकाओं के दीक्षा प्रसंग पर नूतन दीक्षितों को हित- शिक्षा * प्रभु के परम प्रभाव से सिद्धाचल की गोद में हम पवित्र दीक्षा - महोत्सव देख रहे हैं । यह दृश्य देखकर किसका हृदय गद्गद् नहीं होगा ? यहां नाण में तीन गढ़ हैं। ऊपर सिंहासन है । बराबर समवसरण की यह प्रति कृति है । यहां भगवान की उपस्थिति में ही चतुर्विध संघ के समक्ष हम व्रत ग्रहण कर रहे हैं, यह मानना है । - साथ ही साथ प्रत्येक दिक्पाल, लोकपाल आदि देवों को भी इस प्रसंग पर निमन्त्रण दिया जाता है । ऐसा दृश्य यहीं पर देखने को मिलेगा । अभी जो 'करेमि भंते' उचराया गया वह जैसा - तैसा सूत्र नहीं है । समता का और समाधि का यह सूत्र है । "हे भगवन् ! मैं आपके समक्ष सर्व सावद्य योगों की प्रतिज्ञा लेने के लिए उपस्थित हुआ हूं । मन, वचन, काया से करना, ३५४ कहे कलापूर्णसूरि
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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