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दूसरे के काम में आये, वही उसकी सार्थकता है । यदि यह नहीं हुआ तो ?
पंचपरमेष्ठी नमस्करणीय क्यों हैं ? क्योंकि वे परोपकार में मग्न हैं । उनकी शक्ति दूसरे के उपकार में ही प्रयुक्त हुई है । उपा. प्रीतिविजयजी ने अपनी शक्तियों का इस प्रकार उपयोग किया था ।
गत वर्ष विहार करते समय सामने से आती ट्रक की टक्कर लगने से वे नीचे गिर पड़े । कहां गिरें ? कैसे गिरे ? यह उस समय आदमी के हाथ में नहीं होता । उनको 'ब्रेन हेमरेज' हो गया और चौबीस घण्टों के पश्चात् समाधि पूर्वक स्वर्गवासी हुए । उन्हों ने पालीताना में दीक्षा ग्रहण की थी । उन्हें साधुसाध्वीजियों के योगोद्वहन में अत्यन्त रूचि थी । नित्य वे कम से कम एकासणा करते थे । पलासवा में वि. संवत् २०१५ में उन्हों ने पू. कनकसूरिजी म. की निश्रा में ४५ उपवास किये थे । ३०, १६, ८ आदि उपवास तो उन्हों ने अनेक बार किये थे । उन्हों ने वर्धमान तप की १०० ओली पूर्ण की थी । १०० वी ओली के पारणे के लिए वे मेरी राह तो देख रहे थे परन्तु मुनियों के आग्रह से १००वी ओली पूर्ण कर ली । बात भी सही है । जीवन का क्या भरोसा ? आज आंखें खुली है । कल बंध भी हो जाये । यदि उस समय १००वी ओली नहीं हुई होती तो ?
(कल अर्चना, सारिका, उर्वशी, मोनल, जया एवं रश्मि छ: कुमारिकाओं की दीक्षा है । वर्षी दान की शोभा यात्रा तथा दीक्षा दोनों कल हैं ।)
कहे कलापूर्णसूरि २
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कळ ३५३