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* एक बालक सातवी मंजिल से नीचे गिरता है, परन्तु नीचे खडे चार समर्थ पुरुष उसे जाली में पकड़ लेते हैं और वह बच जाता है । बाद में उसे गदेले पर सुलाते हैं ।
एक बालक अर्थात्, 'जीव' । सातवी मंजिल से गिरना वह 'मृत्यु' । चार समर्थ पुरुष दान आदि चार धर्म । (दुर्गति में पड़ते जीव को पकड़ लें उसे धर्म कहते हैं ।) गदेला सद्गति है ।
धर्म का कार्य ही यह है कि आपको समाधि प्रदान करके सद्गति में स्थापित करें ।
कई बार ऐसा भी होता है कि जीवन भर साधना की हो, परन्तु अन्त समय में हार जायें । उदाहरणार्थ - कण्डरीक । एक हजार वर्ष संयम का पालन किया, फिर भी अन्तिम ढाई दिनों के भयंकर दुर्ध्यान से वे सातवी नरक में गये ।
इसी लिए मृत्यु के समय समाधि पर इतना बल दिया जाता
* यदि भावी उज्जवल करना हो तो भूत का विचार करना पड़ता है । भूत की ओर दृष्टिपात नहीं करने वाला व्यक्ति भावी को कदापि उज्जवल नहीं बना सकता ।
निगोद अपना भूतकाल है । निर्वाण अपना भविष्य काल है । निर्वाण में जाना है, परन्तु जायें कैसे ?
वे कौन से कारण थे, जिन के कारण अनन्त काल तक निगोद में रहना पड़ा । यह भी गहराई से देखना चाहिये ।
अज्ञान, मोह एवं प्रमाद के कारण हम निगोद में रहे । अभी तक प्रमाद में रहेंगे तो निगोद में ही जाना पड़ेगा ।
* आज पू. उपा. प्रीतिविजयजी म.सा. की प्रथम स्वर्गतिथि है। चारित्र पर्याय में वे मुझसे बड़े थे । बड़े होते हुए भी आचार्य-पद के बाद भी वे मुझे वन्दन करते । मैं इनकार करता तो भी वे वन्दन करते ।
मन्द-कषायता, भद्रिकता, सरलता आदि उनके गुण थे । (कहे कलापूर्णसूरि - २Booooooowwwwwwww ३५१)