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अग्नि संस्कार, शंखेश्वर.
१३-६-२०००, मंगलवार जेठ शुक्ला-१२ : पालीताणा
* भले, इस काल में मुक्ति नहीं है, परन्तु मुक्ति की साधना तो है ही, मुक्ति का मार्ग तो है ही । मार्ग पर चलते रहेंगे तो इस भव में नहीं तो आगामी भव में मुक्ति रूपी मंजिल मिलेगी ही ।
___ मुक्ति की साधना करते-करते मुक्ति जैसे आनन्द का यहां अनुभव किया जा सकता है । इसे जीवन-मुक्ति कही जाती है। जीते जी मुक्ति का सुख अनुभव करना जीवन मुक्ति है ।
अरबों रूपयों का आनन्द हजार अथवा लाख में अमुक अंशो में अनुभव किया जा सकता है; उस प्रकार मुक्ति के आनन्द की झलक यहां अनुभव की जा सकती है ।
जिसके पास एक भी रूपया न हो, वह अरबों रूपयों के आनन्द का अनुभव कैसे कर सकता है ?
आत्मिक आनन्द को रोकने वाले विषय हैं, कषाय हैं । ज्यों ज्यों विषय-कषाय घटते जाते हैं, त्यों त्यों आत्मिक आनन्द बढ़ता जाता है ।
दर्शन मोहनीय के क्षयोपशम से सम्यक्त्व प्राप्त होता है, परन्तु (३४४00
monomommmmmm कहे कलापूर्णसूरि - २)