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________________ अब यहां आकर आराधना ही करोगे न ? छोटी सी भी भूल करोगे तो भी लोगों में गाये जाओगे वह ध्यान में रखें । कहने वाले यह भी कहते हैं कि इतनों की यहां क्या आवश्यकता है ? आप थोड़ी सी भूल भी करेंगे तो लोग तो मुझे ही पकडेंगे । मुझे यश देना या अपयश, यह आपके हाथों में है । यहां आये हैं तो बराबर ग्रहण करें । एक समय ऐसा था जब मैं सोचता कि आज तो मैं बोल गया, परन्तु कल क्या बोलूंगा ? आधा मैटर रहने देकर वह बात अगले दिन पर रहने देता, परन्तु अब ऐसा नहीं है । दादा जब देने वाले बैठे हैं तो मैं कंजूसाई (कृपणता) क्यों करूं ? * गणि अभयशेखरविजयजी ने पांच आशय स्पष्ट करने वाली पुस्तक (सिद्धिना सोपान) भेजी है। आप सबको वह पुस्तक प्रदान की गई है। इस पुस्तक में पांच आशयों पर लिखित बातें अच्छी तरह पढें । किसी भी कार्य की सिद्धि नहीं करो तब तक वह अपूर्ण गिना जायेगा । * सब तो हम पकड़ नहीं सकेंगे। मैंने भक्ति-मार्ग पकडा है । ज्ञानयोग में काम नहीं हैं । चारित्रयोग में अशुद्धियां हैं । तो क्या करें ? मैंने तो एक भक्तियोग पकड़ा है, जिसे मैं हृदय से चाहता हूं । आपने क्या कोई योग पकड़ा है ? भक्ति के लिए क्या चाहिये ? तपस्वी बनने के लिए शारीरिक शक्ति अपेक्षित है । ज्ञानी बनने के लिए बौद्धिक शक्ति अपेक्षित है । दानी बनने के लिए धन-शक्ति अपेक्षित है । परन्तु भक्त बनने के लिए निरपेक्ष बनना अपेक्षित है । किसी भी शक्ति पर मगदूर बना व्यक्ति कदापि 'भक्त' नहीं न सकता । कहे कलापूर्णसरि-२ooooooooooooooooooo ३४३]
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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