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________________ पर पूज्यश्री मांगलिक सुनाने के लिए पधारेंगे । पू.पं. कीर्तिचन्द्रविजयजी सर्व प्रथम एक बात कह दूं । पूज्यश्री ने गाय का शुद्ध घी तथा पू. नूतन आचार्यश्री ने मक्खन प्रदान किया है। मेरे जैसा तो अब छास ही देगा । ६-७ वर्षों की आदत के कारण हिन्दी में कहता हूं । * गौतम स्वामी ने पूछा, 'भगवन् ! लवणसमुद्र जंबूद्वीप को क्यों नहीं डुबोता है ? किसीने सिद्धषि को पूछा, 'आप जूआरी से मुनि कैसे बने ? किसी ने हरिभद्रसूरि को पूछा, 'तुम जैनशासन के रागी कैसे बने ? पूर्वावस्था में तो विरोधी थे ।' किसीने गांधीजी को पूछा - आप जिस दिशा में दृष्टि डालते हो, उस दिशा में हजारों युवक शहीद होने के लिए क्यों तैयार हो जाते सब का उत्तर था - 'धर्म के प्रभाव से ।' * हमारा बडा सौभाग्य है कि ऐसे गुरु देव मिले हैं । किश्ती देखो तो कश्मीर की, बस्ती देखो तो कलकत्ता की और भक्ति देखो तो कलापूर्णसूरि की । उनकी भक्ति देखता हूं तो मुक्ति भी मुझे फीकी लगती है । * मार्ग में लोग पूछते थे - 'पालीताणा में क्यों जा रहे हो ? वहां क्या करोगे ?' हम कहते - 'कुछ नहीं; पूज्य गुरुदेव जो कहेंगे वह करेंगे ।' * यह केवल चातुर्मास नहीं, इतिहास बनना चाहिये । एक का धर्म भी जंबूद्वीप को बचा सकता है तो इन सबका धर्म क्या नहीं करेगा ? धर्म यदि महान् नहीं होता तो ये नेतागण धीरुभाई आदि नीचे नहीं बैठते । कलकत्ता के चातुर्मास में अखबार में पढा - उत्तर कोरिया के दूतने स्वागत के समय गुजरात विधानसभा के अध्यक्ष श्री धीरुभाई को बोतल दी । धीरुभाई को जब पता लगा कि यह शराब की बोतल है तो उन्हों ने कहा, "मैं इसका सेवन नहीं करता । क्षमा कीजिये । [३३४ mmmmmmmmmmmmonsoon कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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