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________________ जो मनुष्य 'उणोदरी' करते है वे अनेक रोगों से बचे रहते हैं । अधिक आहार लेने वाले रोगों से बच नहीं सकते । जो शारीरिक स्वास्थ्य भी नहीं संभाल सकता वह आत्मा का स्वास्थ्य कैसे संभाल सकेगा ? आपने जो वांचनाएं सुनी हैं, उनका परिणाम में जानना चाहता हूं । जो महात्मा जितने नियम (कायोत्सर्ग, स्वाध्याय, माला, तप आदि) लें वे उतने नियम लिख कर हमें दे जायें, ताकि हमें ध्यान रहे । हम उनकी अनुमोदना करेंगे । * वि. संवत् २०१४ में सुरेन्द्रनगर में पू. प्रेमसूरिजी के साथ चातुर्मास के बाद प्रेमसूरिजी म. के साथ विहार हुआ। पचाससाठ महात्मा थे । मणिप्रभविजयजी, धर्मानंदविजयजी आदि महात्मा मार्ग में गावों में से गोचरी लाते । एक बार हम वीरमगाम थे । दूसरे दिन पू. प्रेमसूरिजी आदि ५५ ठाणे आनेवाले थे । गोचरी-पानी की भक्ति हमे करनी थी। दूसरी पोरसी का सम्पूर्ण पानी मेरे भाग में आया । मैं घरों में से घूम कर ४०-५० घड़े पानी ला चुका था । योगानुयोग आज पू. प्रेमसूरिजी म. की स्वर्गतिथी है। सिद्धान्त महोदधि इन आचार्यश्री ने अनेक महात्माओ को तैयार किये है । उन उपकारी आचार्यश्री के चरणों में वन्दन करके उनके गुणों की याचना करें । ___ हम भावनगर की ओर जा रहे हैं, परन्तु आप वाचना आदि से वंचित न रहें, अतः अभयशेखरविजयजी द्वारा लिखित 'सिद्धिना सोपान' नामक पुस्तक प्रत्येक ग्रूप को दिया जायेगा । आप सबको वह पुस्तक मिलेगी । आप उसे अत्यन्त मनन पूर्वक पढ़ें । नूतन पूज्य आचार्यश्री - मैं कुछ भी नया नहीं कहना चाहता । केवल पूज्यश्री की बात आपके कानों तक पहुंचानी है । ___ आप हृदय से वे बातें स्वीकार करके, नियम बनाकर लिखकर पूज्यश्री को दें । भावनगर-शिहोर से हम आये तब वन्दन से पूर्व आपका यह प्रतिज्ञा-पुष्प आप पूज्यश्री को समर्पित करें । वही सबसे बडी गुरुभक्ति होगी । कहे कलापूर्णसूरि - २00mmonsooooooooom ३२५)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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