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(विशेष भक्ति में नहीं जाने की प्रतिज्ञा दी गई । बीमारी के अलावा फलों की प्रतिज्ञा दी गई ।)
__उपवासों के पारणों अथवा बीमारी के अतिरिक्त नौकारसी भी बंध करने योग्य है।
पूज्यश्री -
पू. कनकसूरिजी म. के नियम याद रखें । इस चातुर्मास के बाद अब किसी को यहां चातुर्मास के लिए रहना नहीं है । अब से किसी को यहां चातुर्मास करने के लिए स्वीकृति नहीं मिलेगी।
सूर्यास्त के बाद बाहर न रहें । सूर्यास्त से पूर्व ही उपाश्रय में प्रविष्ट हो जायें । ऐसा क्रम जमायें ।
* अष्ट प्रवचन माताओं की गोद में रहे साधुओं को कोई भय नहीं होता । इज्जत, अपयश आदि कोई भी भय नहीं होता। भगवान ने नियम ही ऐसे बनाये हैं कि इस मार्ग पर चलने में भय लगता ही नहीं । प्रभु-सेवा का प्रथम चरण ही यह है - अभय ! ___ "सेवन कारण पहली भूमिका रे;
अभय अद्वेष अखेद..." पू. आनंदघनजी म.सा. कृत संभवनाथ का स्तवन ।
* आचार्य आदि कोई पद मिलने से मुक्ति-मार्ग निश्चित नहीं होता । उसके लिए गुण प्राप्त करने पड़ते हैं । रिश्वत देकर आप डाक्टरी सर्टिफिकेट प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु मरते हुए रोगी को बचा नहीं सकते । आप की गुण-रहित पदवियें मोक्ष प्रदान नहीं कर सकेंगी ।
* हम नित्य बोलते हैं -
हे जीव माता-पिता ! हमारी घोषणा सुनें - "आज हम घोषित करते हैं कि हमें समस्त जीवों के साथ मैत्री है। किसी के साथ वैर नहीं है । हम सबसे क्षमा याचना करते हैं । सभी जीव हमें क्षमा करें ।" (खामेमि सव्व जीवे)
इसमें मैत्री भाव के उत्कृष्ट उद्गार हैं । मैत्री भावयुक्त साधक सदा अभय होता हैं ।
* ब्रह्मचारी की प्रशंसा देवलोक में भी होती है। सीताजी (३१८000 sooooooooooom कहे कलापूर्णसूरि - २)