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की अग्नि-परीक्षा के समय देव भी देखने के लिए आये थे । अग्नि की क्या शक्ति कि वह महासती को जला सकें ? ज्ञान के अधिष्ठायक देव हैं, उस प्रकार ब्रह्मचर्य के भी अधिष्ठायक देव होते हैं । आपके ब्रह्मचर्य के गुण से प्रसन्न होकर वे आपकी रक्षा करते हैं ।
सूत्रों के भी अधिष्ठायक देव होते हैं । रात्रि में (कुसमय में) उत्कालिक सूत्रों का पाठ करते मुनि को एक देव ने छास बेचने वाली का रूप धर कर समझाया था ।
मुनि - क्या यह छास लेने का समय है ? देव - क्या यह स्वाध्याय करने का समय है ? मुनि समझ गये ।
रूष्ट हुए देव कई बार शरीर में रोग आदि भी उत्पन्न कर देते हैं ।
* 'चाउक्कालं सज्झायस्स अकरणयाए ।'
दिन में चार बार सज्झाय (स्वाध्याय) नहीं करें तो अतिचार लगता है। हम केवल 'धम्मोमंगल' की पांच गाथाओं से समाप्त कर देते हैं । आठ रोटी खाने की आवश्यकता हो और दो रोटी दी जायें तो क्या चलेगा ?
एक ऐसे निहनव हो चुके हैं, जो वस्तु के अन्तिम अंश में ही पूर्णता मानते थे । एक श्रावक ने रोटी, सब्जी, दाल, चावल आदि का एक-एक दाना तथा वस्त्रों का एक तन्तु वहोरा कर उन्हें ठिकाने लगाया ।
रोटी के कण से पेट नहीं भरता तो पांच गाथा से स्वाध्याय किस प्रकार पूर्ण हुआ गिना जायेगा ?
पठन
पठन की अपेक्षा कोई उत्तम मनोरंजन नहीं है, और कोई । स्थायी प्रसन्नता नहीं है ।
- लेडी मोंटेग्यु
हा
कहे कलापूर्णसूरि - २0mmonsooooooooo00 ३१९)