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इन्जेक्शन मृत्यु को नहीं रोक सकता । वकील किसी मुकदमे के लिए 'स्टे ओर्डर' देकर उसे स्थगित कर सकता है, परन्तु मृत्यु को 'स्टे अर्डर' देकर रोकनेवाला अभी तक पैदा नहीं हुआ ।'
मृत्यु तो निश्चित है ही । अब प्रश्न यह है कि वह समाधिमय कैसे बने ? उस समय यदि कोई कषाय आ गये तो ? कषाय कुत्ते के समान हैं । बिना बुलाये आये हुए अतिथि के समान हैं । अरे, डंडा मार कर निकालो तो भी आ जायें, वैसे ये कषाय हैं । कुत्ते का ऐसा ही स्वभाव है न ?
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वि. संवत् २०३२ में एक बार सादड़ी में मांडली में ही एक कुत्ते ने आकर एक मुनि के पात्र में से मेथी का लड्डू उठा लिया । कोई साधु उसे रोक नहीं सका ।
कषाय भी इस कुत्ते के समान हैं, जो अत्यन्त कठिनाई से प्राप्त समतारूपी लड्डू को उठाकर ले जाता है ।
मृत्यु के समय इन कषायों से सचेत होना है । अभी से यदि कषायों को मन्द करने की साधना की होगी तो मृत्यु के समय कषायों की मन्दता रह सकेगी, समता रखी जा सकेगी । कषायों को हटाने के लिए इन्द्रियों को जीतनी पड़ती हैं । जिसने इन्द्रियों पर विजय प्राप्त नहीं की, उसे कषायों को जीतने की आशा छोड़ देनी चाहिये ।
डायाबिटीस (मधुमेह) के रोगी को मिष्टान्न प्रिय हैं, परन्तु हितकर नहीं हैं; उस प्रकार इन्द्रियों के विषय इष्ट होते हुए भी हितकर नहीं है, यह मानकर जो ज्ञान के अंकुश से इन्द्रियों पर नियन्त्रण करता है वही कषायों पर नियन्त्रण कर सकता है ।
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इन्द्रियों का निग्रह ज्ञानी ही कर सकते हैं । तीक्ष्ण ज्ञान एवं सतत जागरूक अवस्था में रहता मन ही इन्द्रियों पर नियन्त्रण कर सकता है । ज्ञान से यहां विवरण युक्त ज्ञान नहीं लेना है, परन्तु हृदय से भावित हुए ज्ञान की यहां बात है ।
इसका श्रेष्ठ उदाहरण उपा. यशोविजयजी म.सा. है । वे महान् ज्ञानी थे । साथ ही साथ वैसे ही प्रभु-भक्त भी थे । उनका ज्ञान भावित अवस्था में पहुंचा हुआ कहा जा सकता है । भावित ज्ञान १७ कहे कलापूर्णसूरि २
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