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________________ महान् चौदह पूर्वधर भी यदि प्रमाद करें तो ठेठ निगोद में जाते हैं । अनन्त चौदह पूर्वधर निगोद में हैं । यदि यह बात निरन्तर याद रहे तो प्रमाद किस बात का होगा ? सतत अप्रमत्त रहना ही साधना का सार है । जीवन में सतत अप्रमत रहनेवाला ही मृत्यु के समय अप्रमत रह सकता है । अप्रमत्त अवस्था अर्थात् जागृतिमय अवस्था । मृत्यु के समय पूर्णतः जागृति हो तो ही मृत्यु पर विजय प्राप्त की जा सकती है, मृत्यु में समाधि रखी जा सकती है । __ यदि मृत्यु का क्षण चूक गये तो सब चूक गये । मृत्यु के समय समाधि रखने की कला राधा-वेध की कला की अपेक्षा भी कठिन है, यह न भूलें । आज रात्रि में ही हमारी मृत्यु होने वाली हो तो क्या हम उसके लिए तैयार हैं ? आज, अभी ही मृत्यु हो तो भी तैयार हो उसे ही मुनि कहा जाता है । मृत्यु का क्या भरोसा ? वह किसी भी समय आ सकती है। आने से पूर्व वह 'फेक्स' या 'फोन' नहीं करेगी। उसके पांवों की आहट तक सुनाई नहीं देगी । वह सीधी ही आपका गला दबायेगी । ऐसा अनेक बार हुआ भी अषाढ़ाभूति नामक आचार्य अपने शिष्यों को जोग करा रहे थे । रात्रि में अचानक उनकी मृत्यु हो गई । शिष्यों को पता लगने से पूर्व ही देव बने उन्होंने अपने मृत कलेवर में प्रवेश किया और आगाढ जोग पूर्ण कराये । देव का जीव तो जाता रहा, परन्तु शिष्यों में संशय का बीज बोता गया । अतः व्याकुल शिष्यों ने सबको वन्दन करना भी बंध किया । क्या पता ? किसी देव की आत्मा भी हो, जिस प्रकार हमारे आचार्यश्री थे । यह मत कितनेक समय तक चला, बाद में किसीके समझाने पर वे शिष्य सुमार्ग पर आये। यह अव्यक्त नामक निह्नव था । तो, मृत्यु चाहे जब आ सकती है । रेल, प्लेन या बस का समय निश्चित कहा जा सकता है, परन्तु मृत्यु का कोई समय निश्चित नहीं है । रेल आदि को तो रोक भी सकते हैं, परन्तु मृत्यु को नहीं रोकी जा सकती । डाक्टर का कोई भी (कहे कलापूर्णसूरि - २000Booooooooooooooo ३०५)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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