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वासक्षेप प्रदान, भुज, वि.सं. २०४३
२६-५-२०००, शुक्रवार ज्ये. कृष्णा-८ : पालीताणा
घोर जंगल में आप मार्ग भूल गये हों, लुटेरों ने आपको लूट कर आंखो पर पट्टे बांद दिये हों, आप भूखे-प्यासे हों, उस समय कोई साहसी व्यक्ति आकर लुटेरों को ललकारे, "खबरदार ! यदि इन पथिकों का नाम लिया तो ! खोल दो इनकी आंखों के पट्टे ! छोड़ दो इन्हें !" तो हमें कितना हर्ष होता है ?
इस समय अपनी यही दशा है । हम भव- अटवी में भूल गये हैं, हमें राग- - द्वेष रूपी लुटेरों ने लूट लिया है । हमारी आंखो पर ज्ञानावरणीय कर्म का पट्टा बांधा है ।
भगवान आकर हमें बचाते हैं ।
भगवान सर्व प्रथम अभय देते है
अभयदयाणं ! बाद में
नेत्रों पर से पट्टा हटाते है चक्खुदयाणं । उसके बाद मार्ग बताते मग्गदयाणं । तत्पश्चात् शरण देते है सरणदयाणं । फिर
है
बोधि देते है बोहिदयाणं ।
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ऐसे भगवान के मिलने का आनन्द कितना होता है ? ऐसे भगवान मिलने पर भी यदि प्रमाद किया तो हमारे समान दयनीय अन्य कोई नहीं होंगे ।
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