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________________ क्या यह काया दुष्ट प्रवृत्ति करने के लिए मिली है ? * 'प्रशमरति' मे कहा है – 'अन्य पदार्थों के अच्छे-बुरेपन के विचार में आप समय व्यतीत करते हैं (गुण-दोषों का चिन्तन यहां गुण से व्यक्ति या वस्तु का बाह्य श्रेष्ठत्व लेना है, जैसे कि यह आम अच्छा है । यह गुण हुआ । यह आम खराब है, यह दोष हुआ) उसकी अपेक्षा आत्म-ध्यान में डूब जाते तो कितना उत्तम हो ? * इस समय वर्तमान जीवन में समता-समाधि नहीं रखें तो मृत्यु के समय समता-समाधि कहां से रख सकेंगे? क्या डाक द्वारा समता-समाधि मिल जायेगी ? क्या उस समय समाधि का पार्सल उतरेगा ? समाधि का पार्सल मिल नहीं सकता । उसे तो भीतर से उत्पन्न करनी पडती है । विहार में दूसरे के पास रहा हुआ पानी का घड़ा क्या हमारे काम में आ सकता है ? हमारे पास हो तो ही घड़ा हमारे काम में आ सकता है। उसी प्रकार से अपने भीतर ही समाधि के संस्कार विद्यमान हों तो काम में आते हैं । कदाचित् विहार में दूसरे का घड़ा भी काम में आ सके, परन्तु समाधि दूसरे की काम में नहीं आयेगी । वह तो स्वयं ही खडी करनी पड़ेगी। * दूसरे किसी को नहीं, और आपको यह चारित्र क्यों मिला ? भले द्रव्य तो द्रव्य, परन्तु यह चारित्र मिला तो सही, संसार का त्याग किया तो सही, क्या यह कम बात है ? पूर्व जन्म में निश्चित रूप से कोई पुन्याई की होगी, साधना की होगी । इतना नित्य सोचो तो भी काम हो जाये । * भगवान आपको श्रेष्ठ तो लगे, परन्तु मैं पूछता हूं भगवान आपको मेरे लगे ? गुरु श्रेष्ठ तो लगे परन्तु क्या मेरे लगे ? मेरेपन का भाव आते ही अहोभाव सहज ही आ जाता * समाधि-मरण के निष्णात वे ही बन सकते हैं, जिन्हों ने तीन गुप्ति के द्वारा तीन दण्ड रोके हो; कषायों को, राग-द्वेष को मन्द किये हों । ३०२Dooooooooooooooooooo
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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